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प्रस्तावना : ४१
'देवदत्तः परशुना काष्ठं छिनत्ति'-देवदत्त कुल्हाड़ीसे लकड़ीको काटता है। इस भिन्नकर्तृक करणके उदाहरणमें जिस प्रकार देवदत्त कर्तासे 'परशु' रूप करण भिन्न है उसी प्रकार (२) 'अग्निर्दहति दहनात्मना'-अग्नि दहनपरिणामसे जलती है, इस अभिन्नकर्तक करणके उदाहरणमें अग्नि कर्तासे दहनपरिणामरूप करण अभिन्न प्रतीत ही है। 'दहनपरिणाम उष्णतारूप गुण है और वह अग्नि-गुणीसे भिन्न ही है' यह मान्यता युक्त नहीं, क्योंकि अग्नि और दहनपरिणाममें सर्वथा भेद स्वीकार करने पर गण-गणीभाव नहीं बन सकता, जैसे सह्य और विन्ध्यमें गुण-गुणीभाव नहीं है । 'गुणीमें गुणका समवाय होनेसे अग्नि और दहनपरिणाममें गुण-गुणीभाव बन सकता है, सह्यमें विन्ध्यका समवाय न होने और संयोग होनेसे उनमें गुण-गुणीभाव नहीं है', यह कथन भी सम्यक् नहीं है, क्योंकि कथंचिद् अविष्वग्भावरूप तादात्म्यसे अतिरिक्त समवाय सिद्ध नहीं होता। यथार्थमें जो सम-एकीभाव, एकरूपसे अवायनिश्चय करना है वह समवाय है। वह कर्मस्थ और कर्तृस्थ दोनों प्रकारका होता है । समवायियों (गुण-गुणी आदिकों) में रहनेवाला समवेयमानत्वरूप समवाय (तादात्म्य) कर्मस्थ समवाय है और प्रमाताका तादात्म्यसे समवायिओंका ग्रहण करना रूप समवायकत्व कर्तृ स्थ समवाय है। इन दोके अतिरिक्त अन्य प्रकार नहीं है, क्योंकि क्रियाको कर्मस्थ और कती स्थ दो ही प्रकारकी कही हैं। 'कर्मस्था क्रिया कर्मणोऽनन्या कर्तृस्था कर्त्त रनन्या'-कर्मस्थ क्रिया कर्मसे अभिन्न होती है और कर्तृस्थ क्रिया कर्तासे अभिन्न' ऐसा कहा गया है। अतः करण भिन्नकर्तृककी तरह अभिन्नकर्तृक भी सिद्ध होता है ।
कर्म भी भिन्नकर्तृककी तरह अभिन्नकर्तृक होता है। उनके भी यहाँ उदाहरण दिये जाते हैं—(१) 'कटं करोति'—देवदत्त चटाई बनाता है। यहाँ चटाई रूप कर्म कर्ता (देवदत्त) से भिन्न है। उसी तरह (२) 'प्रदीपः प्रकाशयत्यात्मानम्'-प्रदीप अपनेको प्रकाशित करता है। यहाँ प्रदीपका स्वरूप प्रकाशन (कर्म) प्रदीपसे अभिन्न प्रतीत ही है। स्पष्ट है कि प्रदीपका स्वरूप (प्रकाशन) प्रदीपसे भिन्न नहीं है, अन्यथा प्रदीप अप्रदीप हो जायेगा, जैसे घट । 'प्रदीपका स्वरूप प्रदीपसे यद्यपि भिन्न है तथापि उसका प्रदीपमें समवाय होनेसे उसमें प्रदीपपना सिद्ध है', यह कथन ठीक नहीं है, क्योंकि जो प्रदीप नहीं हैं, ऐसे घटादिमें भी उसका समवाय हो जाना चाहिए, कारण कि समवाय एक ही है। यदि कहा जाय कि सम्बन्धविशेषके कारण प्रदीपके स्वरूपका प्रदीपमें ही
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