________________
३४ : प्रमाण-परीक्षा विकल्प होते हैं। अनुमानसे वह सिद्ध है अथवा आगमसे ? यदि अनुमानसे वह सिद्ध है तो वह अनुमान कहिए । 'विवादग्रस्त पदार्थ प्रतिभासके अन्तर्गत ही हैं, क्योंकि वे प्रतिभासमान हैं, जो प्रतिभासमान हैं वे प्रतिभासके अन्तर्गत ही देखे गये हैं, जैसे प्रतिभासस्वरूप और प्रतिभासमान हैं चेतन-अचेतन समस्त विवादग्रस्त पदार्थ, इस कारण वे प्रतिभासके अन्तर्गत ही हैं। इस अनुमानसे परमब्रह्मकी सिद्धि होती है, यह अनुमान समीचीन नहीं है, क्योंकि उक्त अनुमानमें जो धर्मी, हेतु और दृष्टान्त प्रयुक्त हैं उन्हें प्रतिभासके अन्तर्गत स्वीकार करने पर साध्यकोटिमें आ जानेसे प्रकृत अनुमानका उदय ही नहीं हो सकता। और यदि उन्हें प्रतिभासके अन्तर्गत नहीं माना जाता तो उन्हींके साथ हेतु (प्रतिभासमानत्व) व्यभिचारी है। __यदि कहा जाय कि अनादिकालीन अविद्याकी वासनासे धर्मी, हेतु और दृष्टान्त प्रतिभाससे बाह्य जैसे अवगत होते हैं, जैसे प्रतिपाद्यप्रतिपादक एवं सभ्य-सभापति प्रतीत होते हैं, अतः उपर्युक्त अनुमानका भी उदय सम्भव है ही। किन्तु जब समस्त अनादिकालीन अविद्याका विलास (कल्पनाजाल) विलीन हो जाता है तो समस्त जगत् प्रतिभासके अन्तर्गत आ जानेसे प्रतिभास ही है, उसमें कोई विवाद नहीं रहता। प्रतिपाद्य-प्रतिपादकभावका अभाव हो जाने पर साध्य-साधनभाव न बननेसे अनुमानप्रयोगकी फिर कोई सार्थकता नहीं है। देश, काल और आकारकी सीमाओंसे रहित, समस्त अवस्थाओंमें व्यापी, प्रतिभास स्वरूप, निर्दोष परमब्रह्मका स्वयं अनुभव होनेपर अनुमानका प्रयोग नहीं होता, अतः उपर्युक्त दोष नहीं है, यह कथन भी युक्त नहीं है । प्रश्न है कि वह अनादिकालीन अविद्या प्रतिभासके अन्तर्गत है या प्रतिभाससे बाहर ? यदि प्रतिभासके अन्तर्गत है तो वह विद्या ही है, वह अविद्यमान धर्मी, हेतु और दृष्टान्तका प्रदर्शन कैसे करा सकती है । अगर उसे प्रतिभाससे बाहर माना जाय, तो पुनः प्रश्न होता है कि वह प्रतिभासमान है या नहीं ? यदि वह प्रतिभासमान नहीं है, तो उससे भेदोंका प्रतिभास कैसे होता है, और यदि वह प्रतिभासमान है, तो उसीके साथ उक्त प्रतिभासमानत्व हेतु व्यभिचारी है, क्योंकि प्रतिभाससे बाहर होनेपर भी वह प्रतिभासमान है। (१५-३३) __यदि कहा जाय कि अविद्या न प्रतिभासमान है, न अप्रतिभासमान, न प्रतिभाससे बाह्य, न प्रतिभासान्तर्गत, न एक, न अनेक, न नित्य, न अनित्य, न व्यभिचारिणी और न अव्यभिचारिणी, क्योंकि वह विचारके
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org