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प्रस्तावना : २९ व्यावृत्तियाँ एक नहीं हैं, अन्यथा उनसे व्यावृत्त नीलपना और क्षणिकपना दोनों अभिन्न हो जायेंगे। यह भी स्मरणीय है कि व्यावृत्तियोंके भिन्न होनेसे वस्तुमें भेद नहीं होता, क्योकि व्यावृत्तियाँ अन्यापोहरूप होनेसे अवस्तु (सांश-मिथ्या) हैं और वस्तु परमार्थसत् निरंश है। ऐसा न मानने पर अनवस्था-अव्यवस्था होगी।'
बौद्धोंका यह कथन भी युक्त नहीं है, क्योंकि जब तक वस्तुमें स्वाभाविक भेद न होगा, तब तक उसमें व्यावृत्तिकल्पित भी भेद सम्भव नहीं। स्पष्ट है कि नीलस्वलक्षण जिस स्वभावसे अनीलसे व्यावृत्त है उसी स्वभावसे वह यदि अक्षणिकसे भी व्यावृत्त है, तो अनील और अक्षणिक दोनों एक हो जायेंगे, क्योंकि नीलस्वलक्षणमें उन दोनों (अनील और अक्षणिक) से व्यावृत्त होनेका एक ही स्वभाव है-अलग-अलग स्वभाव नहीं हैं और स्वभावभेद न होनेसे उन दोनोंकी व्यावृत्तियाँ भी एक हो जायेंगी । यदि नीलस्वलक्षण अनीलसे अन्य स्वभावसे व्यावृत्त है और अक्षणिकसे अन्य स्वभावसे, तो निश्चय ही नीलस्वलक्षणमें स्वभावभेद सिद्ध हो जाता है। यदि कहा जाय कि 'वह स्वभावभेद नीलस्वलक्षणमें अनील-अस्वभावव्यावृत्ति और अक्षणिक-अस्वभावव्यावृत्तिसे कल्पित है, वास्तविक नहीं है, तो इस तरह अन्य-अन्य कल्पित स्वभावोंकी भी कल्पना होनेपर पूर्ववत् अव्यवस्था ओयेगी, क्योंकि अनीलस्वभावकी अन्यव्यावृत्तिको भी अन्य व्यावृत्तिरूप अन्य स्वभावसे कल्पित करना पड़ेगा और उस अन्य व्यावृत्तिको भी तदन्यव्यावृत्तिरूप अन्य स्वभावसे मानना होगा, फलतः किसी भी वस्तुकी व्यवस्था न हो सकेगी।
अगर माना जाय कि 'इसी कारण नीलादि स्वलक्षणरूप वस्तु किसी विकल्प अथवा शब्दका विषय (अभिधेय) नहीं हैं, क्योंकि विकल्पों और शब्दोंका विषय अन्यव्यावृत्ति है, जो अनादिकालीन विद्यमान अविद्या (अज्ञान) के कारण कल्पित होती है और कल्पित (मिथ्या) होनेसे वह विचारयोग्य नहीं है। यदि उसे विचारयोग्य माना जाय, तो वह अवस्तु न रहकर वस्तु हो जायेगी,' यह मान्यता भी समीचीन नहीं है, क्योंकि उक्त न्यायसे दर्शनका विषय (नीलादि स्वलक्षण) भी अवस्तु सिद्ध होगावह भी शब्द और विकल्पके विषयकी तरह विचारयोग्य नहीं है।
प्रश्न उठता है कि नीलस्वलक्षण सुगतके प्रत्यक्षका भी विषय है और सुगतसे भिन्न अन्य संसारी जनोंके प्रत्यक्षका भी विषय है, सो वह दोनों के प्रत्यक्षद्वारा एकस्वभावसे जाना जाता है या भिन्न-भिन्न स्वभावसे ? यदि एकस्वभावसे वह दोनोंके प्रत्यक्षद्वारा जाना जाय, तो जो नीलस्व
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