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________________ प्रस्ताना : ११५ परीक्षाएँ उपकी है। परन्त आदि १२ जैन दर्शन सम्मत प्रमाणके स्वरूप, संख्या, विषय और फलका संक्षेपमें अच्छा एवं बोधगम्य विवेचन किया है। (७) पत्र-परीक्षा-यह गद्य-पद्यामत्क लघु तर्क-रचना है। इसमें जैन दृष्टिसे पत्र (अनुमानप्रयोग) की व्यवस्था की गयी है और पराभिमत पत्रमान्यताओंकी मीमांसा की है। रचना बड़ी सुन्दर और प्रवाहपूर्ण है। (८) सत्यशासनपरीक्षा-इसमें विद्यानन्दने पुरुषाद्वत आदि १२ शासनों (मतों) की परीक्षा करनेकी प्रतिज्ञा की है। परन्तु वर्तमान रचनामें ९ शासनोंकी तो पूरी परीक्षाएँ उपलब्ध हैं। किन्तु प्रभाकरशासनका कुछ अंश, तत्त्वोपप्लवपरीक्षा और अनेकान्त-परीक्षा इसमें उपलब्ध नहीं हैं। इससे लगता है कि यह कृति विद्यानन्दके अन्तिम जीवनकी है, जिसे वे पूरा नहीं कर पाये हैं। रचना तर्कणाओंसे ओतप्रोत और बहुत ही विशद है । (९) श्रीपरपाश्र्वनाथस्तोत्र-यह अतिशय क्षेत्र श्रीपुरके पार्श्वनाथके सातिशय प्रतिबिम्बको लक्ष्य कर रचा गया है और देवागमकी तरह इसमें उनके शासनको युक्तिशास्त्राविरोधी सिद्ध करके उन्हें स्तुत्य सिद्ध किया है। इसमें ३० पद्य हैं । २९ पद्य तो ग्रन्थ-विषयके प्रतिपादक हैं और अन्तिम ३० वां पद्य उपसंहारात्मक है। रचना दार्शनिक है। (ख) नया चिन्तन इन कृतियोंमें कितना ही नया चिन्तन उपलब्ध है। यदि हम उस सबका संकलन करें तो उसकी एक लम्बी और बृहद् सूची बनायी जा सकती है। किन्तु यहाँ कतिपय ही नये चिन्तित विषयोंकी चर्चा की जायगी। ___ (१) भावना-विधि-नियोग-इसमें सन्देह नहीं कि आ० विद्यानन्दका दर्शनान्तरीय अभ्यास अपूर्व था। वैशेषिक, न्याय, मीमांसा, चार्वाक, सांख्य और बौद्ध दर्शनोंके वे निष्णात विद्वान् थे। उन्होंने अपने ग्रन्थोंमें इन दर्शनोंके जो विशद पूर्वपक्ष प्रस्तुत किए हैं और उनकी जैसी मार्मिक समीक्षा की है, उससे स्पष्टतया विद्यानन्दका समग्र दर्शनोंका अत्यन्त सूक्ष्म और गहरा अध्ययन जाना जाता है। किन्तु मीमांसादर्शनकी भावना, नियोग और वेदान्तदर्शनकी विधि सम्बन्धी दुरूह चर्चाको जब हम उन्हें अपने तत्त्वार्थश्लोकवात्तिक और अष्टसहस्रीमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001102
Book TitlePramana Pariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, P000, & P035
File Size13 MB
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