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११० : प्रमाण-परीक्षा
कारने अपना 'विद्यानन्द' नाम भी प्रकट किया जान पड़ता है, जिसका भाव यह है कि यह प्रमाण-परीक्षा आचार्य विद्यानन्द प्रणीत है । इसका जो अध्ययन-मनन करेंगे वे विद्यानन्द - विद्या और आनन्दके भोक्ता बनेंगे। साथ ही ग्रन्थकारने भी अपने लिए विद्याफलकी प्राप्तिकी मंगलकामना की है ।
इस प्रकार प्रमाण-परीक्षा पूर्ण हुई ।
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