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२. ग्रन्थकार इस 'प्रमाण-परीक्षा' ग्रन्थके कर्ता आचार्य विद्यानन्द हैं। ये विद्यानन्द वे ही विद्यानन्द हैं, जिन्होंने विद्यानन्द-महोदय, तत्त्वार्थश्लोकवात्तिक, अष्टसहस्री आदि सुप्रसिद्ध एवं उच्चकोटिके दार्शनिक एवं न्याय-ग्रन्थोंका प्रणयन किया है । यहाँ उन्हींका कुछ परिचय प्रस्तुत किया जाता है। विशेष परिचय हमने 'आप्त-परीक्षा' की प्रस्तावनामें दिया है। __आ० विद्यानन्द और उनके ग्रन्थ-वाक्योंका अपने ग्रन्थोंमें उद्धरणादिरूपसे उल्लेख करने वाले उत्तरवर्ती ग्रन्थकारोंके समल्लेखों तथा विद्यानन्दकी स्वयंकी रचनाओंपरसे जो उनका संक्षिप्त, किन्तु अत्यन्त प्रामाणिक परिचय उपलब्ध होता है, उसपरसे विदित हैं कि विद्यानन्द वर्तमान मैसूर राज्यके पूर्ववर्ती गंगराजाओं-शिवमार द्वितीय (ई० ८१०) और उसके उत्तराधिकारी राचमल्ल सत्यवाक्य प्रथम ( ई० ८१६) के समकालीन विद्वान् हैं। इनका कार्यक्ष त्र मुख्यतया इन्हीं गंगराजाओंका राज्य मैसूर प्रान्तका वह बहुभाग था, जिसे 'गंगवाडि' प्रदेश कहा जाता था। यह राज्य लगभग ईस्वी चौथी शताब्दीसे ग्यारहवीं शताब्दी तक रहा और आठवीं शतीमें श्रीपुरुष (शिवमार द्वितीयके पूर्वाधिकारी) के राज्यकालमें वह चरम उन्नतिको प्राप्त था । शिलालेखों तथा दानपत्रोंसे ज्ञात होता है कि इस राज्यके साथ जैनधर्मका घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है । जैनाचार्य सिंहनन्दिने इसकी स्थापनामें भारी सहायता की थी और आचार्य पूज्यपाद-देवनन्दि इस राज्यके गंगनरेश दुविनीत ( लगभग ई० ५०० ) के राजगुरु थे । अतः आश्चर्य नहीं कि ऐसे जिनशासन और जैनाचार्य भक्त राज्यमें विद्यानन्दने बहुवास किया हो और वहाँ अपने बहुत समय-साध्य विशाल तार्किक ग्रन्थोंका प्रणयन किया हो । कार्यक्षेत्रकी तरह संभवतः यही प्रदेश उनकी जन्मभूमि भी रहा ज्ञात होता है, क्योंकि अपनी ग्रन्थ-प्रशस्तियोंमें उल्लिखित इस प्रदेशके राजाओंकी उन्होंने पर्याप्त प्रशंसा एवं यशोगान किया है। इन्हीं तथा दूसरे प्रमाणोंसे विद्यानन्दका समय इन्हीं राजाओंका काल स्पष्ट ज्ञात होता है। अर्थात् विद्यानन्द ई० ७७० से ८४० के विद्वान् निश्चित होते है । १. लेखकद्वारा सम्पादित 'आप्त-परीक्षा' की प्रस्तावना । २. वही, प्रस्तावना पृ० ५२ तथा ५४ । ३. , , , पृ० ५३
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