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________________ प्रस्तावना : १०१ अन्य प्रकारके वर्णों या पद-वाक्योंकी सम्भावना नहीं है, क्योंकि वह सर्वथा अपूर्व उत्पन्न नहीं होता || २-१६५ ॥ शंका - एक महेश्वर, जो अनादि सर्वज्ञ है, वर्णोंका उत्पादक है, जैसे वह प्रथम सृष्टिके समय लोकोंका उत्पादक है, क्योंकि वह सदा स्वतंत्र है, किसी दूसरे सर्वज्ञके पराधीन नहीं है । अतः वह वर्णों का अनुवादक नहीं है ? अतः समाधान — उक्त शंका युक्त नहीं है, क्योंकि इस अनादि एक ईश्वरका निरास आप्तपरीक्षा (का० १०, पृ० ५० ) में किया गया है, अनादि एक ईश्वर कपिल आदिकी तरह युक्तिसे सिद्ध नहीं होता । किसी तरह वह सम्भव भी हो, तो वह जो सदा ईश्वर हैं, सर्वज्ञ हैं और ब्राह्म मानके अनुसार सौ-सौ वर्षक अन्तमें लोकोंका स्रष्टा है, पूर्व-पूर्व सृष्टिके समय स्वयं उत्पन्न किये गये वर्ण और पद-वाक्योंका उत्तर-उत्तर सृष्टिकालमें उपदेष्टा होनेसे अनुवादक क्यों नहीं होगा । एक कवि, जिसने अपनी काव्यरचना की है, उसका पुनः पुनः कथन करनेपर अनुवादक नहीं होगा, ऐसा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि 'शब्द और अर्थ दोनों का पुनर्वचन पुनरुक्त है, केवल, अनुवादके अतिरिक्त' इस प्रतिपादनका विरोध आता है । उसी एकका पुनः पुनः कथन किये जानेपर भी उसे अनुवाद न मानने पर वह पुनरुक्त ही सिद्ध होगा, जो एक दोष हैं और अनुवाद दोष नहीं है | अतः यदि कोई अपनी रची रचनाको पुनः कहता हैं और इस लिए उसे अनुवादक कहा जाता हैं तो महेश्वर भी अपने उत्पादित वर्ण-पद- वाक्योंका दूसरी आदि सृष्टिके समय पुनः पुनः कथन करनेसे अनुवादक है, क्योंकि पूर्व-पूर्व कथनको उत्तरोत्तर दुहराना अनुवाद है । शंका- महेश्वर पूर्व पूर्व वर्ण-पद-वाक्योंसे विलक्षण ही वर्ण-पदवाक्योंकी रचना करता है, अतः वह अनुवादक नहीं है ? समाधान - यह शंका भी सम्यक् नहीं हैं, क्योंकि ऐसा किसी भी प्रमाणसे सिद्ध नहीं होता और यदि सिद्ध भी हो, तो प्रश्न उठता हैं कि वह क्या पूर्व - पूर्व वर्ण-पद- वाक्योंका ज्ञान न होनेसे उनका अप्रणेता है या शक्ति न होनेसे या प्रयोजन न होनेसे ? प्रथम पक्षमें उसके सर्वज्ञता नहीं बनेगी, जब कि वह सब प्रकार के 'वर्ण-पद- वाक्योंका ज्ञाता हैं, अन्यथा वह अनीश्वर हो जायेगा । द्वितीय पक्ष भी युक्त नहीं है, क्योंकि ईश्वरको अनन्तशक्ति माना गया हैं । यदि एक समय में कुछ ही वर्ण-पद- वाक्यों को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001102
Book TitlePramana Pariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, P000, & P035
File Size13 MB
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