SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९२ : प्रमाण-परीक्षा कार्य विशिष्ट चेष्टा आदि है, उसकी शवशरीरमें उपलब्धि नहीं है, अतः उसमें बुद्धिका अभाव सिद्ध किया गया है । २. कारणानुपलब्धि-इसके प्रशम आदि नहीं हैं, क्योंकि तत्त्वार्थश्रद्धान उपलब्ध नहीं होता। यहाँ प्रशम आदिका कारण तत्त्वार्थश्रद्धान है, उसकी अनुपलब्धिसे प्रशमादिका अभाव सिद्ध किया है । ३. व्यापकानुपलब्धि—यहाँ शिशपा नहीं है, क्योंकि वृक्ष नहीं है । यहाँपर शिशपाके व्यापक वृक्षकी अनुपलब्धिसे शिशपा व्याप्यका अभाव किया गया है। ४. सहचरानुपलब्धि-इसके तत्त्वज्ञान नहीं है, क्योंकि सम्यग्दर्शन नहीं है। तत्त्वज्ञानके सहचर सम्यग्दर्शनकी अनुपलब्धिसे तत्त्वज्ञानका अभाव अनुमानित किया गया है। ५. पूर्वचरानुपलब्धि-एक मुहूर्त्तके अन्तमें शकटका उदय नहीं होगा, क्योंकि कृत्तिकाका उदय नहीं है। यहाँ शकटके पूर्वचर कृत्तिकाके उदयकी अनुपलब्धिसे शकटोदयके अभावका अनुमान किया गया है। ६. उत्तरचरानुपलब्धि-एक मुहूर्त पहले भरणिका उदय नहीं हुआ, क्योंकि कृत्तिकाका उदय नहीं है। यहाँ भरणिके उत्तरचर कृत्तिकाके उदयकी अनुपलब्धिसे भरणिके उदयका अभाव बोधित किया गया है। इसी प्रकार कारणकारणानुपलब्धि, व्यापकव्यापकानुपलब्धि आदि परम्पराप्रतिषेधसाधकप्रतिषेधसाधन हेतुओंको भी जान लेना चाहिए। इस समस्त निरूपणकी सम्पुष्टिके लिए ग्रन्थकारने हेतुभेदोंकी संग्राहिका पूर्वाचार्योंकी सात कारिकाएँ प्रस्तुत की हैं। उनका अर्थ यह है___ 'कार्य, कारण, व्याप्य, पूर्वचर, उत्तरचर और सहचरके भेदसे लिंग (विधिसाधक-विधिसाधन) छह प्रकारका है, जो भूत (सद्भाव) रूप होकर भूत (सद्भाव) का साधक होता है और जिसमें लिंगका लक्षण अन्यथानुपपन्नत्व निश्चित रूपमें रहता है । ये छहों हेतु भूतभूत हैं ।।१।। प्रतिषेधसाधक-विधिसाधन लिंगके साक्षात्की अपेक्षा विरुद्ध कार्य, विरुद्ध कारण, विरुद्ध व्याप्य, विरुद्ध सहचर, विरुद्ध पूर्वचर और विरुद्ध उत्तरचर ये छह भेद बतलाये गये है, जो अभूत (अभाव) रूप साध्यके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001102
Book TitlePramana Pariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, P000, & P035
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy