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प्रस्तावना : ९१
स्वयं सद्भावरूप होकर सद्भावरूप साध्य के साधक हैं, उक्त २२ भेदोंमें मिलाने पर हेतुके प्रथम भेद बिधिसाधन (उपलब्धि) के कुल २८ भेद हैं । इस तरह विधिसाधनके विधिसाधक और विधिप्रतिषेधक इन दो भेदोंका कथन किया गया। विधिसाधकको 'भूत-भूत' और विधिप्रतिषेधकको 'अभूत-भूत' नामोंसे भी वर्णित किया गया है। ___ अब हेतुके दूसरे भेद प्रतिषेधसाधन (अनुपलब्धि) के भी विधिसाधकप्रतिषेधसाधन और प्रतिषेधसाधक-प्रतिषेधसाधन इन दो भेदोंका कथन किया जाता है। प्रथमको भूत-अभूत और द्वितीयको अभूत-भूत कहा गया है। यहाँ ध्यातव्य है कि विद्यानन्दने कणादके द्वारा कथित लिंगके भूत-भूत, अभूत-भूत और भूत-अभूत इन तीन भेदोंके साथ समत्वय किया है और अभूत-अभत नामक चौथे नये भेदको स्वीकार कर हेतुके चार भेदोंका निर्देश किया है।
विधिसाधक-प्रतिषेधसाधन हेतु (भूत-अभूत)
जिन हेतुओंका साध्य सद्भाव (भूत) रूप और साधन निषेध (अभूत) रूप हो उन्हें विधिसाधक-प्रतिषेधसाधन (भूत-अभूत) हेतु कहते हैं । यथा
१. विरुद्धकार्यानुपलब्धि-इस प्राणीके व्याधिविशेष है, क्योंकि निरामय चेष्टा नहीं है।
२. विरुद्धकारणानुपलब्धि-सर्वथा एकान्तवादका कथन करने वालोंके अज्ञानादि दोष हैं, क्योंकि उनके युक्ति और शास्त्रसे अविरोधी वचन नहीं है। ____३. विरुद्धस्वभावानुपलब्धि-इस मुनिके आप्तत्व है, क्योंकि विसंवादी नहीं है।
४. विरुद्धसहचरानुपलब्धि-इस तालफलकी पतनक्रिया हो चुकी है, क्योंकि डंठलके साथ संयोग नहीं है।
इस प्रकार और भी जानना चाहिए। विधि प्रतिषेधक-प्रतिषेधसाधन हेतु (अभूत-अभूत)
जिनमें साध्य निषेध (अभूत-अभाव) रूप हो और साधन भी निषेध (अभूत-अभाव) रूप हो उन्हें विधिप्रतिषेधक-प्रतिषेधसाधन (अभूतअभूत) हेतु कहते हैं । यथा
१. कार्यानुपलब्धि-इस शवशरीरमें बुद्धि नहीं है, क्योंकि विशिष्ट चेष्टा, वार्तालाप और विशिष्ट आकारकी उपलब्धि नहीं होती । बुद्धिका
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