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________________ ९० : प्रमाण-परीक्षा विशेषोंका व्यापक मिथ्यादर्शनसामान्य है, उसका विरोधी तत्त्वज्ञानसामान्य है, उसका व्याप्य सत्यज्ञानविशेष है। ११. कारणव्यापकविरुद्धव्याप्य—'इसके प्रशम आदि नहीं हैं, क्योंकि मिथ्याज्ञानविशेष है।' प्रशम आदिका कारण सम्यग्दर्शनविशेष है, उसका व्यापक सम्यग्दर्शनसामान्य है, उसका विरोधी मिथ्याज्ञानसामान्य है, उसका व्याप्य मिथ्याज्ञानविशेष है। १२. व्यापककारणविरुद्धव्याप्य--'इसके तत्त्वज्ञानविशेष नहीं है, क्योंकि मिथ्यार्थोपदेशका ग्रहण है।' तत्त्वज्ञानविशेषोंका व्यापक तत्त्वज्ञानसामान्य है, उसका कारण तत्त्वार्थोपदेशग्रहण है, उसका विरोधी मिथ्यार्थोपदेशग्रहणसामान्य है, उससे व्याप्त मिथ्यार्थोपदेशग्रहणविशेष है । १३. कारणविरुद्धसहचर-'इसके प्रशम आदि नहीं है, क्योंकि मिथ्याज्ञान है ।' प्रशम आदिका कारण सम्यग्दर्शन है, उसका विरोधी मिथ्यादर्शन है, उसका सहचर मिथ्याज्ञान है । १४. व्यापकविरुद्धसहचर-'इसके मिथ्यादर्शनविशेष नहीं है, क्योंकि सम्यग्ज्ञान है।' मिथ्यादर्शनविशेषोंका व्यापक मिथ्यादर्शनसामान्य है, उसका विरोधी तत्त्वार्थश्रद्धानरूप सम्यग्दर्शन है, उसका सहचर सम्यग्ज्ञान है। १५. कारणव्यापकविरुद्धसहचर-'इसके प्रशम आदि नहीं हैं, क्योंकि मिथ्याज्ञान है।' प्रशम आदिका कारण सम्यग्दर्शनविशेष हैं, उनका व्यापक सम्यग्दर्शनसामान्य है, उसका विरोधी मिथ्यादर्शन है, उसका सहचर मिथ्याज्ञान है। १६. व्यापककारणविरुद्धसहचर- इसके मिथ्यादर्शनविशेष नहीं है, क्योंकि सत्यज्ञान है।' मिथ्यादर्शनविशेषोंका व्यापक मिथ्यादर्शनसामान्य है, उसका कारण दर्शनमोहोदय है, उसका विरोधी सम्यग्दर्शन है, उसका सहचर सम्यग्ज्ञान है। इस प्रकार साक्षात् विरोधी ६ और परम्पराविरोधी १६, कुल २२ विरोधी हेतु, जिन्हें प्रतिषेधसाधकविधिसाधन कहा जाता है, जानना चाहिए। ये सभी हेतु अन्यथानुपपत्तिनियमके बलसे अभूत-असद्भावप्रतिषेधके गमक हैं और स्वयं भूत-सद्भाव-विधिरूप हैं। अतः इन विरोधी लिंगोंको 'अभूतभूत' भी कहा गया है। विधिसाधकविधिरूप हेतुके पूर्वोक्त कार्यादि ६ भेदोंको, जिन्हें 'भूत-भूत' कहा जाता है, क्योंकि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001102
Book TitlePramana Pariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1977
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, P000, & P035
File Size13 MB
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