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प्रस्तावना : ८५
'जिस हेतुमें अन्यथानुपपन्नत्व (अन्यथा—साध्यके अभावमें अनुपपन्नत्व-नहीं होना, अविनाभाव) है वही सच्चा हेतु है, उसमें त्रैरूप्य रहे, चाहे न रहे, तथा जिसमें अन्यथानुपपन्नत्व नहीं है वह सच्चा हेत नहीं है, उसमें त्रैरूप्य रहने पर भी वह बेकार है ।' ___यहाँ इन दोनों (अन्यथानुपपन्नत्वके सद्भाव और असद्भाव) स्थलोंके उदाहरण उपस्थित है
.. एक महतके बाद शकट नक्षत्रका उदय होगा, क्योंकि कृत्तिकाका उदय है। इस सद् अनुमानमें कृत्तिकोदय हेतु शकट नामक पक्षमें नहीं रहता, अतः उसमें पक्षधर्मत्व नहीं है। पर कत्तिकोदयका शकटोदय साध्यके साथ अन्यथानुपपन्नत्व होनेके कारण वह गमक है और सद्धेतु है।
२. गर्भस्थ मंत्रीपुत्र श्याम होगा, क्योंकि वह मैत्रीका पुत्र है, अन्य पुत्रोंकी तरह । इस असद् अनुमानमें मैत्रीपुत्र हेतुमें पक्षधर्मत्व, सपक्षसत्त्व और विपक्षासत्त्व तीनों रूप विद्यमान हैं। परन्तु मैत्रीपुत्रत्व हेतुका श्यामत्व साध्यके साथ अविनाभाव नहीं है और इसलिए मैत्रीपुत्रत्व हेतु श्यामत्व साध्यका गमक नहीं है और न स तु है ।
अतः सर्वत्र हेतुओंमें अन्यथानुपपन्नत्वके सद्भावसे गमकता और उसके असद्भावसे अगमकता है।
उपर्युक्त विवेचनसे यौगों (नैयायिक और वैशेषिकों) द्वारा स्वीकृत पाँच रूप भी अविनाभावका विस्तार नहीं हो सकते, क्योंकि उनके रहने पर भी अविनाभावरूप नियम नहीं देखा जाता। पक्षधर्मत्व (पक्षव्यापकत्व), सपक्षसत्त्व (अन्वय) और विपक्षासत्त्व (व्यतिरेक) इन तीन रूपोंमें अबाधितविषयत्व और असत्प्रतिपक्षत्व इन दो रूपोंको और मिलाकर पाँच रूप कहे गये हैं। 'वह (गर्भस्थ पुत्र) श्याम होगा, क्योंकि उसका पुत्र है, अन्य पुत्रोंकी तरह' इस अनुमानमें, जो असद् अनुमान है, 'उसका पुत्र' हेतुके विषय (साध्य) श्यामत्वका बाधक प्रत्यक्षादि कोई प्रमाण न होनेसे हेतु अबाधितविषय होने पर भी अविनाभावरूप नियमके अभावसे गर्भस्थ पुत्रके अश्याम होनेकी संभावनासे व्यभिचारी है । तथा गर्भस्थ पुत्रमें अश्यामपनाको सिद्ध करने वाला प्रतिपक्षी दूसरा अनुमान न होनेसे हेतु असत्प्रतिपक्ष भी है, किन्तु व्यभिचारी होनेसे उसमें अविनाभावका अभाव पाया जाता है। अतः पाँच रूप हेतुके लक्षण नहीं हैं। अतएव यों कहना चाहिए कि
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