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________________ સુમાલીસમું ] તપસ્વી હીરલા આ જગચંદ્રસૂરિ ૧૨૧ (बादशाहका) पूर्ण हृदय तमाम जनता यथा सारे जानदारों (जीव- . धारियों )के शांतिके लिये लगा है कि समस्त संसारके निवासी शांति और सुखके पालनेमें रहें । इन दिनोंमें ईश्वरभक्त व ईश्वरके विषयमें मनन करनेवाले जिनचंद्रसूरि खरतर भट्टारकको मेरे मिलनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ उसकी ईश्वरभक्ति प्रगट हुई । मैंने उसको बादशाही मिहरबानियोंसे परिपूर्ण कर दिया उसने प्रार्थना की कि इससे पहिले ईश्वरभक्त हीरविजयसूरि तपसीने (हजूरके ) मिलनेका सौभाग्य प्राप्त किया था उसने प्रार्थना की थी कि हरसाल बारह दिन साम्राज्यमें जीववध न हो और किसी चिडीया या मच्छीके पास न जाय (न सतावें) उसकी प्रार्थना कृपाकी दृष्टि से व जीव बचानेकी दृष्टिसे स्वीकार हुई थी, अब मैं आशा करता हूं कि मेरे लिये (एक) सप्ताहभरके लिये उसी तरहसे (बादशाहका) हुकम हो जाय । इसलिये हमने पूर्ण दयासे हुकम किया कि आषाढ मासके शुक्लपक्षमें सात दिन जीववध न हो और न सतानेवाले (गैर मूजी ) पशुओंको कोइ न सतावे, उसकी तफसील यह है:- नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, और पूर्णमासी । वास्तवमें बात यह है कि, चूंकि आदमीके लिये ईश्वरने भिन्न भिन्न अच्छे पदार्थ दिये हैं, अतः उसे पशुओंको न सताना चाहिए और अपने पेटको पशुओंकी कब्र न बनावे; कुछ हेतुवश प्राचीन समयके कुछ बुद्धिमान लोगोंने इस प्रथाको चला दिया था। चाहिये कि जैसा उपर लिखा गया है उस पर अमल करें, इसमें कमी न हो और इसे (हुकमको ) कार्यरूपमें परिणत करनेमें बहुत सहनशीलतासे काम लें । उपर लिखी तारीखको लिखा गया । अबुलफज़ल व वाक्यानवीस इब्राहीमवेरा नकल-(१) उडीसा और उडीसा की सब सरकारे (ओरिसा प्रान्त) जिहन्ताबाद खिलजीयाबाद मारोहा (मादोहा) सरीफाबाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001078
Book TitleJain Paramparano Itihas Vol 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay, Gyanvijay, Nyayavijay
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1964
Total Pages933
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size15 MB
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