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धर्म और समाज
किया है । इसलिए हरएक सम्प्रदायकी नई पीढ़ीके लोगोंको चाहे वे अपने धर्मशास्त्र के मूल सिद्धान्त बहुत गम्भीरतासे जानते हों या न जानते हों, यह स्पष्ट मालूम हो गया कि अपने बुजुर्ग और धर्माचार्य जिन धर्म- सिद्धान्तोंकी महत्ता गाते हैं उन सिद्धान्तोंको वे अपने घेरोंमें सजीव या कार्यशील नहीं करते या नहीं कर सकते। क्योंकि अपने बाड़ेके बाहर कांग्रेस जैसे व्यापक क्षेत्र में भी वे अपनी सिद्धान्तकी सक्रियता और शक्यता नहीं मानते । इसलिए नई पीढ़ीने देख लिया कि उसके वास्ते ये सम्प्रदाय, व्यवहार और धर्म दोनों दृष्टिसे बंधनस्वरूप हैं । इस खयालसे हरएक सम्प्रदायकी शिक्षित नई पीढ़ीने • राष्ट्रीयता की तरफ झुककर और साम्प्रादायिक भेदभाव छोड़कर कांग्रेसको अपना -कार्य-क्षेत्र बना लिया है ।
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अब तो सम्प्रदायके कट्टर पंडितों, धर्माचार्यों और कांग्रेसानुगामी नई पीढ़ी के बीच विचार- द्वन्द्व शुरू हो गया । जब कट्टर मुल्ला या मौलवी · तरुण मुसलमान से कहता है कि " तुम कांग्रेस में जाते हो, किन्तु वहाँ तो इस्लामके विरुद्ध बहुत-सी बातें होती हैं, तुम्हारा फर्ज सबसे पहले अपने दीन : इस्लामको रोशन करना और अपने भाइयोंको अधिक सबल बनाना है । "
तब इस्लाम तरुण जवाब देता है कि " राष्ट्रीय विशाल क्षेत्रमें तो उल्टा . मुहम्मद साहब के भ्रातृभावके सिद्धान्तको विशेष व्यापक रूपसे सजीव बनाना • संभव है । सिर्फ इस्लामहीके बाड़े में तो यह सिद्धान्त शिया सुन्नी, वगैरह • नाना तरहके भेदों में पड़कर खण्डित हो गया है और समग्र देशोंके अपने पड़ोसी
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इसपर मुल्ला या मौलवी इन युवकोंको • नास्तिक समझकर दुतकार देता है सनातनी पण्डित और सनातनी संन्यासी भी इसी भाँति अपनी नई पीढ़ीसे कहते हैं कि " अगर तुमको कुछ करना ही है तो क्या हिन्दू जातिका क्षेत्र छोटा है ? कांग्रेस में जाकर तो तुम धर्म, कर्म और शास्त्रकी हत्या ही करोगे । " नई पीढ़ी उनसे कहती है कि आप जिस धर्म, कर्म और शास्त्रोंके नाशकी बात कहते हो उसको अब नई रीतिसे जीवित करनेकी जरूरत है ।
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भाइयोंको 'पर' मानता आया है
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यदि प्राचीन रीति से ही उनका जीवित रह सकना शक्य होता तो इतने 'पंडितों और संन्यासियोंके होते हुए हिन्दू धर्मका तेज नष्ट नहीं हुआ होता
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