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________________ सम्प्रदाय और कांग्रेस नहीं था कि राज-काजमें चाणक्य-नीतिका अनुसरण किया जाय या आत्यन्तिक सत्य नीतिका । किन्तु गाँधीजीकी शक्ति प्रकट होनेके बाद जैनोंमें सामान्यत:: स्वधर्म-विजयकी जितनी प्रसन्नता प्रकट हुई, उतनी ही वैदिक और मुसलमान समाजके धार्मिक लोगोंमें तीव्र रोष-वृत्ति जागृत हुई । वेद-भक्त आर्यसमाजियोंमें ही नहीं, महाभारत, उपनिषत् और गीताके भक्तोंमें भी यह भाव उत्पन्न हो गया कि गाँधी तो जैन मालूम पड़ता है। यदि यह वैदिक या ब्राह्मण धर्मका मर्म लो. तिलकके समान जानता होता, तो अहिंसा और सत्यकीः इतनी आत्यन्तिक और एकान्तिक हिमायत न करता । कुरान-भक्त मुसल-- मानोंका चिढ़ना तो स्वाभाविक ही था। चाहे जो हो, पर यह निश्चय है कि जबसे कांग्रेसके कार्य-प्रदेशमें गाँधीजीका हस्त-प्रसार हुआ, तबसे कांग्रेसके द्वार जैनोंके वास्ते खुल गये । इस बातके साथ-साथ यह भी कह देना चाहिए. कि अगर हिन्दुस्तान में जैनों जितने या उनसे कम प्रभावशाली बौद्ध गृहस्थ या भिक्षु होते तो उनके वास्ते भी कांग्रेसके द्वार धर्म-दृष्टिसे खुल गये होते। मेरी समझमें ऊपरका संक्षिप्त विवरण साम्प्रदायिक मनोवृत्ति समझनेके लिए काफी है । साम्प्रदायिक भावनासे मन इतना संकीर्ण और निष्क्रिय जैसा हो जाता है कि उसे विशाल कार्य-प्रदेशमें आने तथा सक्रिय सहयोग देनेकी सूझती ही नहीं । इसलिए जब तिलक और लालाजीकी भावना राजकीय क्षेत्रमें मुख्य थी, तब भी महाभारत, गीता और चाणक्य-नीतिके भक्त कट्टर हिन्दुओं और कट्टर सन्यासियोंने कांग्रेसको अपना कार्य-क्षेत्र नहीं माना। वे किसी न किसी बहाने अपनी धार्मिकता कांग्रेससे बाहर रहनेमें ही समझते थे । इसी तरह जब गाँधीजीकी सत्य और अहिंसाकी तात्त्विक दृष्टि राजकीय क्षेत्रमें दाखिल हुई.. तब भी अहिंसाके अनन्य उपासक और प्रचारक कट्टर जैन गृहस्थ और जैन साधु कांग्रेसके दरवाजेसे दूर रहे और उससे बाहर रहने में ही अपने धर्मकी रक्षा करनेका संतोष पोषण करते रहे । किन्तु दैव शिक्षाके द्वारा नई सृष्टि तैयार कर रहा है । प्रत्येक सम्प्रदायके युवकोंने थोड़े या ज्यादा परिमाणमें शिक्षा-क्षेत्रमें भी परिवर्तन शुरू कर दिया है। युवकोंका विचार-बिन्दु तेजीसे बदलता जा रहा है। शिक्षाने कट्टर साम्प्रदायिक पिताके पुत्रमें भी पिताकी अपेक्षा विशेष विशाल दृष्टि-बिन्दु निर्माण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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