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________________ सम्प्रदाय और कांग्रेस ७३ जब कट्टरपंथी जैन गृहस्थ और त्यगी धर्मगुरु तरुण पीढ़ीसे कहते हैं कि "तुम गाँधी गाँधी पुकारकर कांग्रेसकी तरफ क्यों दौड़ते हो ? अगर तुमको कुछ करना ही है तो अपनी जाति और समाजके लिए क्यों नहीं कुछ करते ?" तरुण कोरा जवाब देते हैं कि “अगर समाज और जातिमें ही काम करना शक्य होता और तुम्हारी इच्छा होती तो क्या तुम खुद ही इसमें कोई काम नहीं करते ? जब तुम्हारी जातीय और साम्प्रदायिक भावनाने तुम्हारे छोटेसे समाजमे ही सैकड़ों भेदोपभेद पैदा कर क्रिया-कांडके कल्पित जालोंकी एक बाढ़ खड़ी कर दी है, जिससे तुम्हारे खुदके लिए भी कुछ करना शक्य नहीं रहा, तब हमको भी इस बाड़ेमें खीचकर क्यों खिलवाड़ करना चाहते हो?" इस प्रकार प्राचीन साम्प्रदायिक और नए राष्ट्रीय मानसके बीच संघर्ष चलता रहा, जो अब भी चालू है। विचार-संघर्ष और ऊहापोहसे जिस प्रकार राष्ट्रीय महासभाका ध्येय और कार्यक्रम बहुत स्पष्ट और व्यापक बना है, उसी प्रकार नई पीढ़ीका मानस भी अधिकाधिक विचारशील और असंदिग्ध बन गया है । आजका तरुण ईसाई भी यह स्पष्ट रूपसे समझता है कि गरीबों और दुखियोंकी भलाई करनेका इंसाका प्रेम-संदेश यदि जीवनमें सच्ची रीतिसे उतारना अभीष्ट हो, तो उसके लिए हिन्दुस्तानमें रहकर राष्ट्रीय महासभा जैसा दूसरा विशाल और असंकुचित क्षेत्र नहीं मिल सकता । आर्य समाजमें भी नई पीढ़ीके लोगोंका यह निश्चय है कि स्वामी दयानन्दद्वारा प्रतिपादित सारा कार्यक्रम उनके दृष्टिबिन्दुसे और भी अधिक विशाल क्षेत्रमें अमलमें लानेका कार्य कांग्रेस कर रही है। इस्लाममें भी नई पीढ़ीके लोग अपने पैगम्बर साहबके. भ्रातृभावके सिद्धान्तको कांग्रेसके पंडालमें ही मूर्तिमान होता देख रहे हैं। कृष्णके भक्तोंकी नई पीढ़ी भी उनके कर्मयोगकी शक्ति कांग्रेसमें ही पाती है। नई जैन पीढ़ी भी -महावीरकी अहिंसा और अनेकांत दृष्टिकी व्यावहारिक तथा तात्त्विक उपयोगिता कांग्रेसके कार्यक्रमके बाहर कहीं नहीं देखती। इसी कारण आज जैन समाजमें एक प्रकारका क्षोभ पैदा हो गया है, जिसके बीज वर्षों पहले बोये जा ‘चुके थे। आज विचारशील युवकोंके सामने यह प्रश्न है कि उनको अपने विचार और कार्य-नीतिके अनुकूल आखिरी फैसला कर लेना चाहिए । जिसकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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