SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्तमान साधु और नवीन मानस १२१ तो अभी जिस भूकम्पका समाजमें अनुभव किया जा रहा है उसको अस्वाभाविक या केवल आगन्तुक कौन बुद्धिमान् कह सकेगा ? वर्तमान भूकम्प कैसे थमे ? या तो आजकी और इसके बादकी पीढ़ी नव-शिक्षणके दरवाजोंपर ताले लगाकर उसके संस्कारोंको आमूल मिटा दे और या साधुवर्ग अपनी संकीर्ण दृष्टिमर्यादाको विस्तीर्ण करके नव शिक्षणके द्वारोंमें प्रवेश करने लगे, तभी यह भूकम्प थमनेकी संभावना हो सकती है । नवशिक्षणके द्वारोंमें प्रवेश किये बिना और बारहवीं सदीकी पुरानी प्रणालीका शिक्षण प्राप्त करते रहनेपर भी यदि श्वेताम्बर साधु स्थानकवासी साधुओंकी तरह धर्मके नामसे नवपीढ़ीकी विचारणा या प्रवृत्तिमें अनधिकार बाधा डालना छोड़ दें, तो भी यह भूकम्प थम सकता है। इसके लिए या तो साधुवर्गके लिए पोपों और पादरियोंकी तरह अपने विचार और कार्यकी मर्यादा बदलनेकी अनिवार्य आवश्यकता है या फिर नवीन पीढ़ीको ही हमेशाके लिए मुक्तज्ञानके द्वारोंको बंद कर देना चाहिए। किन्तु क्या दोनोंमेंसे एक वर्ग भी कभी अपना पल्ला नीचा करनेको तैयार होगा ? नहीं। कोई पामर व्यक्ति भी वर्तमान और उसके बादके मुक्त शिक्षणके अवसरोंको गँवानेके लिए तैयार न होगा । इसके बिना साम्प्रत जीवनका टिकना भी असंभव है। जिस साधुवर्गने आजतक पैतृक तप-संपतिके बलसे गृहस्थोंके ऊपर राज्य किया है, और अनधिकार सत्ताके घुट पिये है, वह बुद्धिपूर्वक पुराने जमानेसे आगे बढ़कर नवीन युगके अनुकूल अपने मानसको बना ले, यह तो शायद ही संभव हो । इसी कारण प्रश्न होता है कि नव मानसके पथप्रदर्शक कौन हो सकते हैं ? नये मानसके पथ-दर्शक या तो गुरुपदपर रहकर श्रावकोंके मानसका पथ-प्रदर्शन करनेवाला साधुवर्ग नवमानसका भी पथ-प्रदर्शक बने या नवमानस स्वयं ही अपनी लगाम अपने हाथमें ले ले। इसमेंसे पहला तो सर्वथा असम्भव है । हमने देखा है कि आजकलके साधुकी शिक्षण-मर्यादा बिलकुल ही संकुचित है और दृष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy