SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२० धर्म और समाज है। उसमें विविध विषयोंपर गंभीर और व्यापक अध्ययन करनेवाले प्रोफेसरोंकी विचारधारा बहती रहती है और विविध विषयोंकी आमूल नये ढंग 'पर चर्चा करकाली पुस्तकोंसे भरी हुई लायबेरियाँ रहती हैं । - इसके सिवाय दो बातें ऐसी हैं जो साधु-शिक्षण और नव शिक्षणके बीच बड़ी भारी दीवाल सिद्ध होती हैं । एक तो पंथोंके बाड़ोंमें परवरिश पाया हुआ साधु-मानस स्वभावतः ऐसा डरपोक होता है कि वह भाग्यवश किसी छिद्रसे कोई प्रकाश पा भी ले, परन्तु खुल्लमखुल्ला अपनी परम्पराके विरुद्ध कुछ भी कहनेमें मृत्युके कष्टका अनुभव करता है, जिस तरह पर्दे में रहनेवाली स्त्रीका मानस खुली हवामें पैर रखते ही करता है। लेकिन नई शिक्षाका विद्यार्थी उस भयसे बिल्कुल मुक्त रहता है । वह जो जानता है या मानता है उसे बेधड़क कह सकता है। उसको साधुकी तरह न तो घबड़ाना पड़ता है और न दंभका ही आश्रय लेना पड़ता है। दूसरे नव शिक्षण पानेवाले युवकों और युवतियोंको केवल इसी देशके विविध स्थलों और विविध जातियोंके बीच ही नहीं विदेशोंके विशाल प्रदेशोंका स्पर्श करना भी सुलभ हो गया है । सैंकड़ों युवक ही नहीं -युवतियाँ और कुमारिकाएँ भी यूरोप और अमेरिका जाती हैं। जैसे ही वे जहाजपर चढ़कर अनंताकाश और अपार समुद्रकी ओर ताकते हैं, उनके जन्मसिद्ध बँधन बिल्कुल टूटते नहीं तो ढीले अवश्य हो जाते हैं । विदेशभ्रमण और परजातियोंके सहवाससे और विदेशी शिक्षण संस्थाओं, अद्भुत प्रयोगशालाओं और पुस्तकालयोंके परिचयसे उनका मानस हजारों वर्षकी तीव्रतम ग्रंथियोंको भी तोड़नेकी कोशिश करने लगता है और वे सब कुछ नई दृष्टिसे देखने समझते लगते हैं। इस प्रकार हमने देखा कि जिनको जैन प्रजा अपने गुरुके नाते, अपने नायक और पथ-प्रदर्शककी भाँति मानती आई है उनका मानस किस प्रकारका है और पिछले कुछ वर्षोंसे जो नवीन 'पीढ़ी नई शिक्षा पा रही है और जिसके लिए उस शिक्षाका ग्रहण करना अनिवार्य है, उसके मानसका गठन किस प्रकार हो रहा है। अगर इन दो प्रकारके गठनोंकी पार्श्वभूमिमें अबूझ और अजोड़ कोई बड़ा भेद है, Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & www.jainelibrary.org |
SR No.001072
Book TitleDharma aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
PublisherHemchandra Modi Pustakmala Mumbai
Publication Year1951
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy