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________________ ३६ प्रस्तावना 'सुचारित्ररूपी जलयान द्वारा इस संसार समुद्र से पार लगाइए।' बालक का मामा नेमि गुरु से परिचय करवाता है। "देवचन्द्रसूरि कहते हैं कि-'इस बालक को प्राप्त कर हम इसे निःशेष शास्त्र परमार्थ में अवगाहन करावेंगे; पश्चात् यह इस लोक में तीर्थक्कर जैसा उपकारक होगा। इसलिए इसके पिता चच्च से कहो कि इस चक्रदेव को व्रत-ग्रहण के लिए आज्ञा दे ।' ___"बहुत कहने सुनने पर भी पिता अतिस्नेह के कारण आज्ञा नहीं देता; परन्तु पुत्र 'संयम ग्रहण करने के लिए दृढ़मना है । मामा की अनुमति से वह चल पड़ता है और गुरु के साथ 'खम्भतित्थ' (खम्भात ) पहुँचता है ।" ___ सोमप्रभसूरि के कथन से इतना तो स्पष्ट है कि पिता की अनुमति नहीं थी; माता का अभिप्राय क्या होगा इस विषय में वह मौन है। मामा की अनुमति से चंगदेव घर छोड़कर चल देता है। सोमप्रभसूरि के कथन का तात्पर्य ऐसा भी है कि बालक चंगदेव स्वयं ही दीक्षा के लिए दृढ़ था। पाँच या आठ वर्ष के बालक के लिए ऐसी दृढ़ता मनोविज्ञान की दृष्टि से कहाँ तक सम्भव है इस शंका का जिस तरह निराकरण हो उसी तरह से इस विषय का ऐतिहासिक दृष्टि से निराकरण हो सकता है । सम्भव है, केवल साहित्य की छटा लाने के लिए भी इस प्रकार सोमप्रभसूरि ने इस प्रसंग का वर्णन किया हो। ' चंगदेव का श्रमण सम्प्रदाय में कब प्रवेश हुआ इस विषय में मतभेद है। 'प्रभावक चरित' के अनुसार वि० सं० ११५० ( ई० स० १०९४ ) अर्थात् पाँच वर्ष की आयु में हुआ। जिनमण्डनकृत 'कुमारपाल प्रबन्ध' वि० सं० ११५४ ( ई० सं० १०९८ ) का वर्ष बतलाता है जब कि प्रबन्ध-चिन्तामणि, पुरातन-प्रबन्ध-संग्रह और प्रबन्धकोश आठ वर्ष की आयु बतलाते हैं। दीक्षा विषयक जैनशास्त्रों का अभिप्राय देखें तो आठ वर्ष से पूर्व दीक्षा सम्भव नहीं होती। इसलिए चंगदेव ने साधु का वेश आठ वर्ष की अवस्था में वि० सं० ११५४ (ई० स० १०९८) में ग्रहण किया होगा, ऐसा मानना अधिक युक्तियुक्त है।' ___ सोमप्रोभसूरि के कथनानुसारः-"उस 'सोममुह'-सौम्यमुख का नाम सोमचन्द्र रखा गया। थोड़ा समय जिनागम कथित तप करके वह गंभीर श्रुतसागर के भी पार पहुँचा । 'दुःषम समय में जिसका सम्भव नहीं है ऐसा गुणौघवाला' यह है ऐसा मनमें विचार कर श्रीदेवचन्द्रसूरि ने उसे गणधर पद पर स्थापित किया। हेम जैसी देह की कान्ति थी और चन्द्र १ देखो 'कुमारपाल प्रतिबोध' पृ. २१। २ देखो प्रभावकचरित पृ० ३४७ श्लोक ८४८ । ३ देखो काव्यानुशासन प्रस्तावना पृ० २६७-८ । प्रभावकचरित में वि० सं० ११५० (ई० स०१०९४) का वर्ष कैसे आया यह विचारणीय प्रश्न है। मेरा अनुमान ऐसा है कि धंधुका में देवचन्द्रसूरि की दृष्टि चंगदेव पर उस वर्ष में जमी होगी; प्रबन्धचिन्तामणि के अनुसार चंगदेव देवचन्द्ररि के साथ प्रथम कर्णावती आया; वहाँ उदयन मंत्री के पुत्रों के साथ उसका पालन हुआ और अन्त में चच्च (प्रबन्ध चिन्तामणि के अनुसार चाचिग) के हाथों ही दीक्षा महोत्सव खम्भात में हुआ। उस समय चंगदेव की आयु आठ वर्ष की हुई होगी। चच्च की सम्मति प्राप्त करने में तीन बर्ष गए हों ऐसा मेरा अनुमान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001069
Book TitlePramana Mimansa Tika Tippan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1995
Total Pages340
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, Nay, & Praman
File Size24 MB
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