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________________ प्रन्थकार का परिचय डा० ब्युरुहर ने ई० स० १८८९ में विएना में आ० हेमचन्द्र के जीवन ऊपर गवेषणापूर्वक एक निवन्ध प्रगट किया था; उसमें उन्होंने आ० हेमचन्द्र के अपने ग्रन्थ 'व्याश्रयकाव्य' 'सिद्धहेम की प्रशस्ति' और 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' में से 'महावीर चरित' के अतिरिक्त प्रभाचन्द्र सूरि कृत 'प्रभावक चरित' ( वि० सं० १३३४-ई० स० १२७८), मेरुतुङ्गकृत 'प्रबन्ध चिन्तामणि' (वि० सं० १३६१-ई० स० १३०५), राजशेखरकृत 'प्रबन्धकोश' और जिनमण्डन उपाध्याय कृत 'कुमारपाल प्रबन्ध' का साधन के रूप में उपयोग किया था। अब हमें इनके अलावा. सोमप्रभसूरि कृत 'कुमारपाल प्रतिबोध' और 'शतार्थ काव्य', यशःपालकृत "मोहराजपराजय" (वि० सं० १२२९-३२), और अज्ञातकर्तृक "पुरातन प्रबन्धसंग्रह" उपलब्ध हैं। इनमें से सोमप्रभसूरि तथा यशःपाल आ० हेमचन्द्र के लघुवयस्क समकालीन थे। इस सामग्री में से "कुमारपाल प्रतिबोध" ( वि० सं० १२४१ ) को आचार्य की जीवन कथा के लिए मुख्य आधार ग्रन्थ मानना चाहिए और दुसरे ग्रन्थों को पूरक मानना चाहिए । सोमप्रभसूरिके कथनानुसार उनके पास ज्ञेय-सामग्री खूब थी, पर उस सामग्री में से उन्होंने अपने रस के विषय के अनुसार ही उपयोग किया है। इसलिए हम जिसे जानना जाहें ऐसा बहुत सा वृत्तान्त गूढ़ ही रहता है । ___ 'प्रभावकचरित' के अनुसार आचार्य की जन्मतिथि वि० सं० ११४५ की कार्तिक पूर्णिमा है। इसके बाद के अन्य सभी ग्रन्थ यही तिथि देते हैं इसलिए इस तिथि का स्वीकार करने में कोई अड़चन नहीं है। लघुवयस्क समकालीन सोमप्रभसूरि को आचार्य के जीवन की किसी भी घटना की तिथि देने की आवश्यकता प्रतीत नहीं हुई। .. ___ मोदकुल', पिता 'चच्च' ( अथवा चाचिग ), माता 'चाहिणी' ( अथवा पाहिणी ), वासस्थान धंधुक्य' (धन्धुका )-ये बातें भी निर्विवाद हैं। जन्म धन्धुका में ही हुआ होगा या अन्यत्र इस बारे में सोमप्रभसूरि का स्पष्ट कथन नहीं है। . __ बालक का नाम 'चङ्गदेव' था । वह जिस समय माता के गर्भ में था उस समय माता ने जो आश्चर्यजनक स्वप्न देखे थे उनका वर्णन सोमप्रभसूरि करते हैं। आचार्य के अवसान के बाद बारहवें वर्ष में पूर्ण हुए ग्रन्थ में इस प्रकार जो चमत्कारी पुरुष गिने जाने लगे यह समकालीन पुरुषों में उनकी जीवन-महिमा का सूचक है। सोमप्रभसूरि की कथा के अनुसारः "पूर्णतल्लगच्छ के देवचन्द्रसूरि विहार करते हुए धंधुका आते हैं; वहाँ एक दिन देशना पूरी होने पर एक 'वणिक्कुमार' हाथ जोड़कर आचार्य से प्रार्थना करता है १ 'कुमारपाल प्रतिबोध' पृ. ३ श्लोक ३०-३१ । २ देखो पृ. ३४७ श्लोक ८४८ । ३ देखो 'कुमारपाल प्रतिबोध' (वि० सं० १२४१) पृ० ४७८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001069
Book TitlePramana Mimansa Tika Tippan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1995
Total Pages340
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, Nay, & Praman
File Size24 MB
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