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________________ प्रस्तावना प्रसिद्ध हुएं ), जयराशि भट्ट के 'तत्त्वोपप्लव' की 'युक्तियों' के बल से पाटन की सभा में वाद करने वाला भृगुकच्छ ( भड़ोंच ) का कौलकवि धर्म, तर्कशास्त्र के प्रौढ़ अध्यापक जैनाचार्य शान्तिसूरि जिनकी पाठशाला में 'बौद्ध तर्क में से उत्पन्न और समझने में कठिन ऐसे प्रमेयों' की शिक्षा दी जाती थी और इस तर्कशाला के समर्थ छात्र मुनिचन्द्र सूरि इत्यादि पण्डित प्रख्यात थे । 'कर्णसुन्दरी नाटिका' के कर्ता काश्मीरी पण्डित बिल्हण ने और नवाङ्गीटीकाकार अभयदेवसूरि ने कर्णदेव के राज्य में पाटन को सुशोभित किया था। जयसिंह सिद्धराजके समयमें सिंह नामका सांख्यवादी, जैन वीराचार्य, 'प्रमाणनयतत्वालोक' और टीका 'स्याद्वादरत्नाकर' के रचयिता प्रसिद्ध तार्किक वादिदेवसूरि इत्यादि प्रख्यात थे। 'मुद्रितकुमुदचन्द्र' नामक प्रकरण में जयसिंह की विद्वत्सभा का वर्णन आता है। उसमें तर्क, भारत और पराशर के महषि सम महर्षिका, शारदादेश ( काश्मीर ) में जिनकी विद्या का उज्ज्वल महोत्सव सुविख्यात था ऐसे उत्साह पण्डित का, अद्भुत मतिरूपी लक्ष्मी के लिए सागरसम सागर पण्डित का और प्रमाणशास्त्र के महार्णव के पारंगत राम का उरलेख आता है ( अंक ५, पृ० ४५) । वडनगर की प्रशस्ति के रचयिता प्रज्ञाचक्षु, प्राग्वाट ( पोरवाड ) कवि श्रीपाल और 'महाविद्वान्' एवं 'महामति' आदि, विशेषणयुक्त भागवत देवबोध परस्पर स्पर्धा करते हुये भी जयसिंह के मान्य थे। वाराणसी के भाव बृहस्पति ने भी पाटन में आकर शैवधर्म के उद्धार के लिए जयसिंह को समझाया था। इसी भाव बृहस्पति को कुमारपाल ने सोमनाथ पाटन का गण्ड ( रक्षक ) भी बनाया था। इनके अतिरिक्त मलधारी हेमचन्द्र, 'गणरत्न-महोदधि' के कर्ता वर्धमानसरि, 'वाग्भट्टालंकार' के कर्ता वाग्मट्ट आदि विद्वान् पाटन में प्रसिद्ध थे। ___इस पर से ऐसी कल्पना होती है कि जिस पण्डित मण्डल में आ० हेमचन्द्र ने प्रसिद्धि प्राप्त की वह साधारण न था। उस युग में विद्या तथा कला को जो उत्तेजन मिलता था उससे हेमचन्द्र को विद्वान् होने के साधन सुलभ हुए होंगे, पर उनमें अग्रसर होने के लिए असाधारण बुद्धि कौशल दिखाना पड़ा होगा। श्री जिनविजय जी ने कहा है उसके अनुसार भारत के कोई भी प्राचीन ऐतिहासिक पुरुष विषयक जितनी ऐतिह्य सामग्री उपलब्ध होती है उसकी तुलना में आ० हेमचन्द्र विषयक लभ्य सामग्री विपुल कही जा सकती है। फिर भी आचार्य के जीवन का सुरेख चित्र चित्रित करने के लिए वह सर्वथा अपूर्ण है। १ बुद्धिसागर कृत ७००० श्लोक प्रमाण संस्कृत व्याकरण जाबालिपुर (जालोर, मारवाड़ ) में वि० सं० ११८० (ई. स. ११२४ ) में पूर्ण हुआ था। जिनेश्वर ने तर्क ऊपर ग्रंथ लिखा था। देखो पुरातत्त्व पुस्तक २, पृ० ८३-८४; काव्यानुशासन प्रस्तावना पृ. १४४-४५ । २ देखो काव्यानुशासन प्रस्तावना पृ. २४२-६२ । ३ देखो, शिल्पकला के लिए-'कुमारपालविहारशतक'-हेमचन्द्र के शिष्य रामचन्द्र कृत, जिसमें कुमारपाल विहार नामक मंदिर का वर्णन है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001069
Book TitlePramana Mimansa Tika Tippan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1995
Total Pages340
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, Nay, & Praman
File Size24 MB
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