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________________ आभ्यान्तर स्वरूप उसे परिणाम मानने का सर्वथा निषेध, ( ३ ) स्थूल जगत् का अवास्तविक या काल्पनिक अस्तित्व अर्थात् मायिक भासमात्र ।। ... .१ आरंभवाद-इसका मन्तव्य यह है कि परमाणुरूप अनन्त सूक्ष्म तत्त्व जुदे जुदे हैं जिनके पारस्परिक संबंधोंसे स्थूल भौतिक जगत् का नया ही निर्माण होता है जो फिर सर्वथा नष्ट भी होता है । इसके अनुसार वे सूक्ष्म आरंभक तत्त्व अनादि निधन हैं, अपरिणामी हैं । अगर फेर फार होता है तो उनके गुणधर्मों में ही होता है। इस वाद ने स्थूल भौतिक जगत् का संबंध सूक्ष्म भूत के साथ लगाकर फिर सूक्ष्म चेतनतत्व का भी अस्तित्व माना है । उसने परस्पर भिन्न ऐसे अनन्त चेतन तत्त्व माने जो अनादिनिधन एवं अपरिणामी ही हैं। इस वाद ने जैसे सूक्ष्म भूत तत्वों को अपरिणामी ही मानकर उनमें उत्पन्न नष्ट होनेवाले गुण धर्मों के अस्तित्व की अलग कल्पना की वैसे ही चेतन तत्त्वों को अपरिणामी मानकर भी उनमें उत्पादविनाश-शाली गुण-धर्मों का अलग ही अस्तित्व स्वीकार किया है। इस मतके अनुसार स्थूल भौतिक विश्व का सूक्ष्म भूत के साथ तो उपादानोपादेय भाव संबंध है पर सूक्ष्म चेतन तत्त्व के साथ सिर्फ संयोग संबंध है । २ परिणामवाद-इसके मुख्य दो भेद हैं (अ ) प्रधानपरिणामवाद और ( ब ) ब्रह्मपरिणामवाद । • (अ) प्रधानपरिणामवाद के अनुसार स्थूल विश्व के अन्तस्तल में एक सूक्ष्म प्रधान नामक ऐसा तत्त्व है जो जुदे जुदे अनन्त परमाणु रूप न होकर उनसे भी सूक्ष्मतम स्वरूप में अखण्ड रूप से वर्तमान है और जो खुद ही परमाणुओं की तरह अपरिणामी न रह कर अनादि अनन्त होते हुए भी नाना परिणामों में परिणत होता रहता है। इस वाद के अनुसार स्थूल भौतिक विश्व यह सूक्ष्म प्रधान तत्त्व के दृश्य परिणामों के सिवाय और कुछ नहीं । इस वाद में परमाणुवाद की तरह सूक्ष्म तत्त्व अपरिणामी रह कर उसमें से स्थूल भौतिक विश्व का नया निर्माण नहीं होता । पर वह सूक्ष्म प्रधान तत्त्व जो स्वयं परमाणु की तरह जड़ ही है, नाना दृश्य भौतिक रूप में बदलता रहता है। इस प्रधान परिणामवाद ने स्थूल विश्व का सूक्ष्म पर जड़ ऐसे एक मात्र प्रधान तत्त्व के साथ अभेद संबंध लगा कर सूक्ष्म जगत् में चेतन तत्त्वों का भी अस्तित्व स्वीकार किया। इस वाद के चेतन तत्त्व आरंभवाद की तरह अनन्त ही हैं पर फर्क दोनों का यह है कि आरंभवाद के चेतन तत्त्व अपरिणामी होते हुए भी उत्पाद विनाश वाले गुण-धर्म युक्त हैं जब कि प्रधानपरिणामवाद के चेतन तत्त्व ऐसे गुणधर्मों से युक्त नहीं । वे स्वयं भी कूटस्थ होने से अपरिणामी हैं और निर्धर्मक होने से किसी उत्पादविनाशशाली गुण-धर्म को भी धारण नहीं करते। उसका कहना यह है कि उत्पादविनाशवाले गुणधर्म जब सूक्ष्म भूत में देखे जाते हैं तब सूक्ष्म चेतन कुछ विलक्षण ही होना चाहिए। अगर सूक्ष्म चेतन चेतन हो कर भी वैसे गुण-धर्मयुक्त हों तब जड सूक्ष्म से उनका वैलक्षण्य क्या रही है । अतएव वह कहता है कि अगर सूक्ष्म चेतन का अस्तित्व मानना ही है तब तो सूक्ष्य भूत की अपेक्षा विलक्षणता लाने के लिये उन्हें न केवल निधर्मक ही मानना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001069
Book TitlePramana Mimansa Tika Tippan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1995
Total Pages340
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, Nay, & Praman
File Size24 MB
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