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भूमिका घड़ा), अष्ट्रिका (गगरी), माणिका ( माणक नामक घड़े का छोटा रूप ), णिसका (मिट्टी का सिलौटा ), आयमणी (आचमनी या चमची), चुल्ली, फुमणाली (फॅकनी), समंछणी (पकड़ने की संडसी), मंजूषिका (छोटी मंजूषा), मुद्रिका (ऐसा बर्तन जिसमें खान-पान की वस्तु मोहर लगाकर भेजी जॉय ), शलाकाञ्जनी (आंजने की सलाई ), पेल्लिका ( रस गारने का कोई पात्र ), धूतुल्लिका (कोई ऐसा पात्र जिसमें धूता या पुतली बनी हो), पिछोला ( मुँह से बजाने का छोटा बाजा ), फणिका ( कंघी ), द्रोणो, पटलिका, वत्थरिका, कवल्ली (गुड़ बनाने का बड़ा कड़ाह ) आदि (पृ०७२)। .
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तीसरे द्वार में नपुंसक जाति के अंगों का परिगणन है। चौथे द्वार में दाहिनी ओर के १७ अंगों के नाम हैं। पाँचवें द्वार में १७ बाईं ओर के अङ्ग, छठे द्वार में १७ मध्यवर्ती अंग, सातवें द्वार में २८ दृढांग, आठवें द्वार में २८ चल अंग और उनके शुभाशुभ फलों का कथन है। नवें द्वार से लेकर २७० ३ द्वार तक शरीर के भिन्न-भिन्न अंग और उनके नाना प्रकार के फलों का बहुत ही जटिल वर्णन है। इन थकादेने वालो सूचियों से पार पाना इस विषय के विद्वानों के लिए भी दूभर काम रहा होगा (पृ०७१-१२९)।
दसवें अध्याय में प्रश्नकर्ता के आगमन और उसके रंग-ढंग, आसन आदि से फलाफल का विचार (पृ० १३०-१३५)।
है
पुच्छित नामक ग्यारहवें अध्याय में प्रश्नकर्ता की स्थिति एवं जिस स्थान में प्रश्न किया जाय, उसके आधार पर फलाफल का कथन है। सांस्कृतिक दृष्टि से यह अध्याय महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें तत्कालीन स्थापत्य संबंधी अनेक शब्दों का संग्रह आ गया है। जैसे कोट्ठक ( कोष्ठक या कोठा), अंगण ( आंगन या अजिर ) अरंजरमूल ( जल गृह ), गर्भ गृह (आभ्यंतर गृह या अन्तःपुर ) भत्तगिह ( भोजन शाला ), वच्चगिह ( वर्च कुटी या मार्जनगृह ), णकूड ( संभवतः नगकूट या क्रीडापर्वत), उदकगृह, अग्निगृह, भूमिगृह ( भोहरा ), विमान, चत्वर, संधि (दो घरों की भीतों के बीच का प्रच्छन्न स्थान), समर (स्मर गृह या कामदेव गृह), कडिक तोरण (चटाई या फंस से बनाया हुआ अस्थायी तोरण), प्राकार, चरिका (प्राकार के पीछे नगर की ओर की सड़क), वेती (संभवतः वेदिका ), गयवारी (गजशाला ), संकम ( संक्रम या परिखा के ऊपर बनाया हुआ पुल), शयन (शयनागार), वलभी (मंडपिका ), रासी ( कूडी), पंसु (धूल ), णिद्धमण ( पानी का निकास मार्ग, मोरी), णिकूड (निष्कुट या गृहोद्यान ), फलिखा ( परिखा), पावीर (संभवतः मूल पाठ पाचीर =प्राचीर ), पेढिका (पेढ़ी या गद्दी ), मोहण गिह ( मदन गृह, स्मरशाला), ओसर (अपसरक-कमरे के सामने का दालान, गुजराती ओसरी, हिन्दी ओसारा), संकड़ ( निश्छिद्र अल्प अवकाश वाला स्थान ), ओसधि गिह, अभ्यन्तर परिचरण (पाठान्तर परिवरण-भीतरी परिवेष्टनपरकोटा), बाहिरी द्वारशाला, गृहद्वार बाहा (गृहद्वार का पार्श्वभाग), उवट्ठाण जालगिह (वह उपस्थानशाला जहाँ गवाक्ष जाल बने हों; यह प्रायः महल के ऊपरी भाग में बनी होती थी ), अच्छणक (आसन गृह या विश्राम स्थान ), शिल्पगृह, कर्मगृह, रजतगृह (चांदी से मांडा हुआ विशिष्ट गृह), ओधिगिह ( पाठान्तर उवगिह = उपगृह ), उप्पलगृह (कमलगृह), हिमगृह, आदंस ( आदर्शगृह, शीशमहल ), तलगिह (भूमिगृह ), आगमगिह (संभवतः आस्थायिका या आस्थानशाला), चतुकगिह (चौक), रच्छागिह (रिक्षागृह), दन्तगिह (हाथी दांत से मंडित कमरा ), कंसगिह ( कांसे से मंडित कमरा ), पडिकम्मगिह (प्रतिकर्म या धार्मिक कृत्य करने का कमरा), कंकसाला ( कंक= विशेष प्रकार का लोहा, उससे बना हुआ कमरा) आतपगिह, पणिय गिह (पण्य गृह ), आसण गिह (आस्थानशाला ), भोजन गृह, रसोती गिह ( रसवती गृह, रसोई) हयगृह, रथगृह, गजगृह, पुष्पगृह, द्य तगृह, पातवगिह (पादप गृह ).
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