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________________ ६२ अंगविज्जापइण्णयं अरतेमिस नामक यूनानी देवी जान पड़ती है और रब्भ की पहचान इस्तर से संभव है जो प्राचीन जगत् में अत्यन्त विख्यात थी और जिसे रायी, रीया भी कहा जाता था । स्त्रीजातीय वस्त्रों के नामों में ये शब्द उल्लेखनीय हैं-पत्रोर्ण, प्रवेणी सोमित्तिक ( अर्थशास्त्र की सौमित्रिका जिसकी पहचान श्री मोतीचन्द जी ने पेरिप्लस के सगमोतोजिन से की है), अर्धकौशेयिका ( जिसमें आधा सूत और आधा रेशम हो ), कौशेयिका ( पूरे रेशमी धागेवाला), पिकानादित ( यह संभवतः बहुत महीन अंशुक था जिसे स्त्रियां पिकनामक केशपाश सिर पर बनाते समय बालों के साथ गूंथती थीं ; पिक नामक केशपाशका उल्लेख अश्वघोष के सौन्दरनंद ७/७ में शुक्लांशुकाट्टाल नाम से एवं पद्मप्राभृतक नामक भाग में कोकिल केशपाश नाम से आया है. और उसका रूप मथुरा वेदिकास्तंभ संख्या जे० ५५ के अशोक दोहद दृश्य में अंकित हुआ है), वाउक या वायुक ( बाफ्त हवा ), वेलविका ( बेलदार या बेलभांत से युक्त वस्त्र ) माहिसिक (महिष जनपद या हैदराबाद के बुने हुए वस्त्र), इल्लि (कोमल या कृष्ण वर्ण के वस्त्र ), जामिलिक ( बौद्ध संस्कृत में इसे ही यमली कहा गया है, दिव्यावदान २७६।११ ; पादताडितकं नामक भाग के श्लोक ५३ में भी इसका उल्लेख हुआ है, जिससे ज्ञात होता है कि यह एक प्रकार का का बंधन या पटका था जिसमें दो भिन्न रंग के वस्त्रों को एक साथ बटकर कटि में बाँधा जाता था - समयुगलनिबद्धमध्यदेशः) । विशेषतः ये वस्त्र चिकने मोटे अच्छे बुने हुए सम्ते या मंहगे होते थे ( पृ० ७१ ) । स्त्रीजातीय आभूषणों में ये नाम हैं- शिरीषमालिका, नलीयमालिका (नलकी के आकार के मनकों की माला ) मकरिका दो मगर मुखों को मिलाकर बनाया हुआ मस्तक का आभूषण), ओराणी (अवारिका या धनिए के आकार के दानों की माला), पुष्पितिका (पुष्पाकृति गहना), मकण्णी ( संभवतः लिपटकर बैठे हुए दो बंदरों के अलंकरण वाला आभूषण ), लकड़ ( कान में पहनने के चन्दन आदि काष्ठ के बुन्दे, वालिका ( कर्णवल्लिका), कर्णिका, कुण्डमालिका ( कुंडल ), सिद्धार्थिका ( वह आभूषण जिसपर सरसों के दाने जैसे वे उठाये गये हों, अंगुलि मुद्रिका, अक्षमालिका ( रुद्राक्ष की आकृति के दानों की माला ), पयुका ( पदिक की आकृति से युक्त माला ), णितरिंगी ( संभवतः लहरियेदार माला ), कंटकमाला (नुकीले दानों की माला ), घनपिच्छलिका ( मोर-पिच्छी की आकृति के दानों से घनी गूथी हुई माला ), विकालिका ( विकालिका या घटिका जैसे दानों की माला ), एकावलिका ( मोतियों की इकलड़ी माला जिसका कालिदास और बाण में उल्लेख आया है), पिप्पलमालिका ( पीपली के आकार के दानों की माला जिसे मटरमाला भी कहते हैं), हारावली ( एक में गूथे हुए कई हार ), मुक्तावली ( मोतियों की विशेष माला जिसके बीच में नीलम की गुरिया पड़ी रहती थी ) । कमर के आभूषणों में काँची, रशना, मेखला, जंबूका ( जामुन की आकृति के बड़े दानों की करधनी जैसी मथुरा कला में मिलती है, कंटिका (कंटोली जैसे दानों वाली), संपडिका ( कमर में कसी या मिली हुई करधनी ) के नाम हैं । पैर के गहनों में पादमुद्रिका ( पामुद्दिका), पादसूचिका, पादघट्टिका, किंकिणिका ( छोटे घूँघरूवाला आभूषण ) और वर्क्टिका ( पैरों का ऐसा आभूषण जिसमें दीमक की आकृति के बिना बजने वाले घूँघुरू के गुच्छे लगे रहते हैं, जिन्हें बाजरे के घूँघरू भी कहते हैं ) ( पृ० ७१ ) । शयनासन और यानों में प्रायः पहले के ही नाम आये हैं। बर्तनों के नामों में ये विशेष हैं-करोडी ( करोटिका-कटोरी ), कांस्यपात्री, पालिका (पालि), सरिका, भौंगारिका, कंचणिका, कवचिका । बड़े बर्तनों (भाण्डोपकरण) के ये नाम उल्लेखनीय हैं - आलिन्दक (बड़ा पात्र), पात्री ( तश्तरी), ओखली (थाली), कालंची, करकी, (टोंटीदार करवा., कुठारीका ( कोष्ठागारका कोई पात्र ) थाली, मंडी ( माँड पसाने का बर्तन ), घड़िया, दव्वी (डोई ), केला ( बड़ा Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001065
Book TitleAngavijja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year1957
Total Pages487
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Jyotish, & agam_anykaalin
File Size15 MB
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