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________________ भगवान् महावीर [ उनके जीवन की विविध भूमिकाएँ ] प्रायः सभी जैन भगवान महावीर की जीवन-कथा से थोड़ा-बहुत तो परिचित होते ही हैं। पर्युषण के दिनों में हम उस कथा को पढ़ते-सुनते आये हैं और जब इच्छा हो उस विषय का साहित्य जुटा कर पढ़ भी सकते हैं। इसलिये आज के दिन भगवान के जीवन की सम्पूर्ण कथा या उसमें से कुछ घटनाओं को सुनाने की पुनरुक्ति नहीं करना है। फिर भी मैं कुछ ऐसा कहना चाहता हूं जिससे कि भगवान् के वास्तविक जीवन का परिचय प्राप्त करने की दिशा में हमारी प्रगति हो सके और भगवान महावीर के ही अनुयायी गिने जाने वाले वर्ग में उनके जीवन के विषय में परस्पर विरुद्ध जो अनेक कल्पनाएँ चालू हैं और जो प्रायः परस्पर टकराने के कारण सम्प्रदायभेद का कारण बन जाती हैं, उनके मूल कारण को भी हम जान सकें जिससे कि आपसी मतभेद दूर होकर भगवान् महावीर के जीवन का गम्भीर रहस्य भी हम पा सकें। मैं यहाँ जो कहूंगा उसका आधार स्वानुभव ही है। दूसरे भाई-बहन अपने अनुभव का उसके साथ मिलान करके यदि मेरे कथन का विचार करेंगे तो फलस्वरूप भगवान् के जीवन की समझ कुछ बढ़ेगी ही। ___कोई एक व्यक्ति दूर से किसी चित्र को देखे तब उसे उस चित्र का भास अमुक प्रकार का होता है। वही व्यक्ति उसी चित्र को यदि निकट से देखे तो उसकी दृष्टिमर्यादा में चित्र का भास अधिक स्पष्ट हो उठता है। किन्तु वहीं व्यक्ति यदि अधिक एकाग्र होकर उस चित्र को अपने हाथ में लेकर विशेष सूक्ष्मता से निरीक्षण करे तो उसे चित्र की खूबियों का विशेष प्रमाण में भान होता है। जैसा चत्र के विषय में है वैसा मूर्ति के विषय में भी है। किसी भव्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001054
Book TitleChar Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1989
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, History, & E000
File Size8 MB
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