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________________ [ धर्मवीर महावीर और कर्मवीर कृष्ण : ५३ अवतार पायेगी । जब मैं देवकी के आठवें गर्भ के रूप में जन्म लूंगा तब तेरा भी यशोदा के घर जन्म होगा । एक साथ जन्मे हुए हम दोनों का, एक दूसरे के यहाँ परिवर्तन होगा ।' विष्णु की आज्ञा शिरोधार्य करके उस योगमाया शक्ति ने देवकी को योगनिद्रावश करके सातवें महीने उसकी कोख में से शेष गर्भ का रोहिणी की कुक्षि में संहरण किया। इस गर्भ - संहरण करने का विष्णु का हेतु यह था कि कंस को, जो देवकी से जन्मे हुये बालकों की गिनती करता था और आठवें बालक को अपना करने के लिए तत्पर था, गिनती पूर्ण शत्रु मानकर उसका नाश करने में शिकस्त देना । जब कृष्ण का जन्म हुआ तब देवता आदि सब ने पुष्प आदि की वृष्टि करके उत्सव मनाया। जन्म होते ही वसुदेव तत्काल जन्मे हुये बालक कृष्ण को उठा कर यशोदा के यहाँ पहुँचाने ले गये । तब द्वारपाल तथा अन्य रक्षक लोग योगमाया की शक्ति से निद्रावश हो अचेत हो गये । दिया । उस समय उस देव ने इन दोनों माताओं को अपनी शक्ति से खास निद्रावश करके बेभान - सी बना दिया था । नौ मास पूर्ण होने पर त्रिशला की वही कोख से जन्म पाने वाला, जीव, भगवान् महावीर हुआ । गर्भहरण कराने से पूर्व इसकी सूचना इन्द्र को आसन के कांपने से मिली थी । इन्द्र ने आसन के काँपने के कारण का विचार किया तो उसे मालूम हुआ कि तीर्थंकर सिर्फ उच्च और शुद्ध क्षत्रिय कुल में ही जन्म ले सकते हैं, अतः तुच्छ भिखारी और नीच इस ब्राह्मणकुल में महावीर के जीव का अवतरित होना योग्य नहीं है । ऐसा विचार कर इन्द्र ने अपने संकल्प के अनुसार, अपने अनुचर देवों के द्वारा योग्य गर्भ-परिवर्तन कराकर कर्त्तव्य पालन किया । महावीर के जीव ने पूर्व भव में बहुत दीर्घकाल पूर्व कुलमद करके जो नीच गोत्र उपार्जन किया था, उसके अनिवार्य फल के रूप में नीच या तुच्छ गिने जाने वाले ब्राह्मण कुल में थोडे समय के लिये ही सही, उन्हें जन्म लेना ही पड़ा । भगवान् के जन्म समय विविध Jain Education International - भागवत दशमस्कन्ध अ० २, श्लो० १ १३ तथा अ ० ३ श्लो० ४६-५० । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001054
Book TitleChar Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1989
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, History, & E000
File Size8 MB
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