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५२ : चार तीर्थंकर] लोकप्रिय ग्रंथ में जैन-सम्प्रदाय के पूज्य और अति प्राचीन माने जाने वाले प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की कथा ने संक्षिप्त होने पर भी मार्मिक और आदरणीय स्थान पाया है।
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तुलना ( इस तुलना में, जिन शब्दों को मोटे टाइप में दिया गया है, उन पर भाषा और भाव की समानता देखने के लिये पाठकों को खास लक्ष्य देना चाहिये। ऐसा करने से आगे का विवेचन स्पष्ट रूप में समझा जा सकेगा।)
गर्भहरण घटना* महावीर
कृष्णजम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में असुरों का उपद्रव मिटाने के ब्राह्मणकुण्ड नामक ग्राम था। लिए देवों की प्रार्थना से विष्णु उसमें बसने वाले ऋषभदत्त ने अवतार लेने का निश्चय करके नामक ब्राह्मण की देवानन्दा नाम योगमाया नामक अपनी शक्ति की स्त्री के गर्भ में नन्दन मुनि को बुलाया। उसको संबोधन का जीव दशवें देवलोक से च्युत करके विष्णु ने कहा-'त जा होकर अवतरित हुआ । तैरासीवें और देवकी के गर्भ में मेरा जो दिन इन्द्र की आज्ञा से उसके शेष अंश आया हुआ है, उसे सेनापति नैगमेषी देव ने इस गर्भ वहाँ से संकर्षण ( हरण ) करके को क्षत्रिय-कृण्ड नामक ग्राम के वसूदेव की ही दूसरी स्त्री निवासी सिद्धार्थ की धर्मपत्नी रोहिणी के गर्भ में प्रवेश कर, त्रिशला रानी के गर्भ में बदल जो बलभद्र राम के रूप में अवकर उस रानी के पुत्री रूप गर्भ तार लेगा और तू नन्दपत्नी को देवानन्दा की कोख में रख यशोदा के घर पुत्री रूप में
* किसी भी दिगम्बर सम्प्रदाय के ग्रंथ में, महावीर के जीवन में इस घटना का उल्लेख नहीं है।
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