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[ धर्मवीर महावीर और कर्मवीर कृष्ण : ५१
साहित्य में राम और कृष्ण की कथा ब्राह्मण - साहित्य जैसी हो ही नहीं सकती, फिर भी इन कथाओं और इनके वर्णन की जैन शैली को देखते हुए यह स्पष्ट प्रतीत हो जाता है कि ये कथाएँ मूलतः ब्राह्मण-साहित्य की ही होनी चाहिये और लोकप्रिय होने पर उन्हें जैन साहित्य में जैन दृष्टि से स्थान दिया गया होना चाहिये । इस विषय को हम आगे चलकर स्पष्ट करेंगे ।
आश्चर्य की बात तो यह है कि जैन-संस्कृति से अपेक्षाकृत अधिक भिन्न ब्राह्मण-संस्कृति के माननीय राम और कृष्ण ने जैनसाहित्य में जितना स्थान रोका है, इससे हजारवें भाग जितना भी स्थान भगवान् महावीर के समकालीन और उनकी संस्कृति से अपेक्षाकृत अधिक नजदीक तथागत बुद्ध के वर्णन को प्राप्त नहीं हुआ । बुद्ध का स्पष्ट या अस्पष्ट नाम निर्देश केवल आगम ग्रन्थों में एक जगह आता है ( यद्यपि उनके तत्त्वज्ञान की सूचनाएँ विशेष प्रमाण में मिलती हैं ) । यह तो हुआ बौद्ध और जैन - कथा ग्रन्थों में राम और कृष्ण की कथा के विषय में; अब हमें यह भी देखना चाहिये कि ब्राह्मण - शास्त्र में महावीर और बुद्ध का निर्देश कैसा क्या है ? पुराणों से पहले के किसी ब्राह्मण-ग्रन्थ में तथा विशेष प्राचीन माने जाने वाले पुराणों में यहाँ तक कि महाभारत में भी, ऐसा कोई निर्देश या अन्य वर्णन नहीं है जो ध्यान आकर्षित करे । फिर भी इसी ब्राह्मण-संस्कृति के अत्यन्त प्रसिद्ध और अतिशय माननीय भागवत में बुद्ध, विष्णु के एक अवतार के रूप में ब्राह्मणमान्य स्थान प्राप्त करते हैं, ठीक इसी प्रकार जैसे जैन ग्रन्थों में कृष्ण एक भावी तीर्थंकर के रूप में स्थान पाते हैं । इस प्रकार पहले के ब्राह्मण-साहित्य में स्थान प्राप्त न कर सकने वाले बुद्ध धीमे-धीमे इस साहित्य में एक अवतार के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं; जब कि स्वयं भगवान् बुद्ध के समकालीन और उनके साथ ही साथ ब्राह्मण-संस्कृति के प्रतिस्पर्धी, तेजस्वी पुरुष के रूप में एक विशिष्ट सम्प्रदाय के नायक पद को धारण करने वाले, इतिहासप्रसिद्ध भगवान् महावीर को किसी भी प्राचीन या अर्वाचीन ब्राह्मणग्रन्थ में स्थान प्राप्त नहीं होता । यहाँ विशेष रूप से ध्यान आकर्षित करने वाली बात तो यह है कि महावीर के नाम या जीवन-वृत्तान्त का कुछ भी निर्देश ब्राह्मण - साहित्य में नहीं है, फिर भी भागवत जैसे
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