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________________ ५० : चार तीर्थंकर ] (१) प्रथम तो यह फलित करना कि दोनों के जीवन की घटनाओं में क्या संस्कृतिभेद है ? (२) दूसरे, इस बात की परीक्षा करना कि इस घटना वर्णन का एक दूसरे पर कुछ प्रभाव पड़ा है या नहीं ? और इससे कितना परिवर्तन और विकास सिद्ध हुआ है ? (३) तीसरे, यह कि जनता में धर्मभावना जागृत रखने और सम्प्रदाय का आधार सुदृढ़ बनाने के लिये कथा-ग्रन्थों एवं जीवनवृत्तान्तों में प्रधान रूप से किन साधनों का उपयोग किया जाता था, इसका पृथक्करण करना और उसके औचित्य का विचार करना। परसम्प्रदायों के शास्त्रों में उपलब्ध निर्देश एवं वर्णन___ ऊपर कहे हुए दृष्टिबिन्दुओं से कतिपय घटनाओं का उल्लेख करने से पूर्व एक बात यहाँ खास उल्लेखनीय है । वह विचारकों के लिये कौतूहलवद्धक है, इतना ही नहीं वरन् अनेक ऐतिहासिक रहस्यों के उद्घाटन और विश्लेषण के लिये उनसे सतत और अवलोकनपूर्ण मध्यस्थ प्रयत्न की अपेक्षा भी रखती है। वह यह हैबौद्धपिटकों में ज्ञातृपुत्र के रूपमें भगवान् महावीर का अनेकों बार स्पष्ट निर्देश पाया जाता है परन्तु राम और कृष्ण में से किसी का भी निर्देश नहीं है। पीछे की बौद्ध जातकों में ( देखिये दशरथ जातक नं० ४६१ ) राम और सीता की कुछ कथा आयी है परन्तु वह वाल्मीकि के वर्णन से एकदम भिन्न प्रकार की है। उसमें सीता को राम की बहिन कहा गया है। कृष्ण की कथा तो किसी भी बौद्धग्रन्थ में आज तक मेरे देखने में नहीं आयी। किन्तु जैनशास्त्रों में राम और कृष्ण-इन दोनों की जीवनकथाओं ने काफी स्थान घेरा है। आगम माने जाने वाले और अन्य आगम ग्रन्थों की अपेक्षा प्राचीन गिने जाने वाले अंग-साहित्य में, रामचन्द्र जो की कथा तो नहीं है, फिर भी कृष्ण की कथा दो अंगों-ज्ञाता और अंतगड-में स्पष्ट और विस्तृत रूप से आती है। आगम ग्रन्थों में स्थान न पाने वाली रामचन्द्र जी की कथा भी पिछले श्वेताम्बर, दिगम्बर दोनों के प्राकृत-संस्कृत के कथा-साहित्य में विशिष्ट स्थान प्राप्त करती हैं । जैनसाहित्य में वाल्मीकि रामायण की जगह जैन-रामायण तक बन जाती है यह तो स्पष्ट है कि श्वेताम्बर, दिगम्बर-दोनों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001054
Book TitleChar Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1989
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, History, & E000
File Size8 MB
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