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________________ [धर्मवीर महावीर और कर्मवीर कृष्ग : ४६ एवं बुद्ध के भिक्षुसंघ की भाँति तन्त्रबद्ध या व्यवस्थित नहीं है। गुरु पदवो को धारण करने वाली हजारों स्त्रियाँ आज भी महावीर और बुद्ध के भिक्षसंघ में मौजद हैं, जब कि राम और कृष्ण के उपासक संन्यासीवर्ग में वह वस्तु नहीं है। राम और कृष्ण के मुख से साक्षात् उपदेश किये हए किसी शास्त्र के होने के प्रमाण नहीं हैं जब कि महावीर और बुद्ध के मुख से साक्षात् उपदिष्ट थोड़े बहुत अंश अब भी निर्विवाद रूप से मौजूद हैं। राम और कृष्ण के मत्थे मढ़े हुए शास्त्र संस्कृत-भाषा में हैं, जब कि महावीर और बुद्ध के उपदेश तत्कालीन प्रचलित लोक-भाषा में हैं। तुलना की मर्यादा और उसके दष्टिबिन्दु हिन्दुस्तान में सार्वजनिक पूजा पाये हए ऊपर के चार महापुरुषों में से किसी भी एक के जीवन के विषय में विचार करना हो या उनके सम्प्रदाय, तत्त्वज्ञान अथवा कार्यक्षेत्र का विचार करना हो तो अवशेष तीनों के साथ सम्बन्ध रखनेवाली उस-उस वस्तु का विचार भी साथ ही करना चाहिए क्योंकि इस समग्र भारत में एक ही जाति और एक ही कुटुम्ब में अकसर चारों पुरुषों की या उनमें से अनेक पुरुषों की पूजा या मान्यता प्रचलित थी और अब भी है। अतएव इन पूज्य पुरुषों के आदर्श मूलतः भिन्न-भिन्न होने पर भी बाद में उनमें आपस में बहुत-सा लेन देन हुआ है और एक दूसरे का एक दूसरे पर बहुत प्रभाव पड़ा है। वस्तुस्थिति इस प्रकार की होने पर भी यहाँ पर सिर्फ धर्मवीर महावीर के जीवन के साथ कर्मवीर कृष्ण के जीवन की तुलना करने का ही विचार किया गया है। इन दोनों महान् पुरुषों के जीवन-प्रसंगों की तुलना भी उपर्युक्त मर्यादा के भीतर रहकर ही करने का विचार है। समग्र जीवनव्यापी तुलना एवं चारों पुरुषों की एक साथ विस्तृत तुलना करने के लिए जिस समय और स्वास्थ्य की आवश्यकता है, उसका इस समय अभाव है । अतएव यहाँ बहुत ही संक्षेप में तुलना की जायगो। महावीर के जन्मक्षण से लेकर केवल ज्ञान की प्राप्ति तक के प्रसंगों को कृष्ण के जन्म से लेकर कंस-वध तक की कुछ घटनाओं के साथ मिलान किया जायगा। यह तुलना मुख्य रूप से तीन दृष्टि-बिन्दुओं को लक्ष्य करके की जायगी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001054
Book TitleChar Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1989
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, History, & E000
File Size8 MB
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