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________________ [दीर्घ तपस्वी महावीर : ३५ एक दूसरे को कुचल कर अपने राज्य के विस्तार करने का प्रयत्न करता था। ऐसी परिस्थिति को दे वकर उस काल के कितने ही विचारशील और दयालु व्यक्तियों का व्याकुल होना स्वाभाविक है। उस दशा को सुधारने की इच्छा कितने ही लोगों को होती है। वह सुधारने का प्रयत्न भी करते हैं और ऐसे साधारण प्रयत्न कर सकने वाले नेता की अपेक्षा रखते हैं। ऐसे समय में बुद्ध और महावीर का जन्म होता है। __ महावीर के वर्धमान, विदेहदिन और श्रमण भगवान् ये तीन नाम और हैं। विदेहदिन्न नाम मातृपक्ष का सूचक है, वर्धमान नाम सबसे पहिले पड़ा। त्यागी जीवन में उत्कट तप के कारण महावीर नाम से प्रसिद्ध हुए और उपदेशक जीवन में श्रमण भगवान् कहलाये । इससे हम भी गृह जीवन, साधक जीवन और उपदेशक जीवन इन तीन भागों में क्रमशः वर्धमान, महावीर और श्रमण भगवान् इन तीन नामों का प्रयोग करेंगे। ____ महावीर की जन्म-भूमि गंगा के दक्षिण विदेह (वर्तमान विहारप्रान्त) है, वहाँ क्षत्रियकुण्ड और कुण्डलपुर नाम का एक कस्बा था। जैन लोग उसे महावीर के जन्मस्थान के कारण तीर्थभूमि मानते हैं। जाति और वंश श्री महावीर की जाति क्षत्रिय थी और उनका वंश नाय (ज्ञात) नाम से प्रसिद्ध था। उनके पिता का नाम सिद्धार्थ था, उन्हें श्रेयांस और यशांस भी कहते थे। चाचा का नाम सुपार्श्व था और माता के त्रिशला, विदेहदिना तथा प्रियकारिणी ये तीन नाम थे। महावीर के एक बड़ा भाई और एक बड़ी बहिन थी। बड़े भाई नन्दिवर्धन का विवाह उनके मामा तथा वैशाली नगरी के अधिपति महाराज चेटक की पुत्री के साथ हुआ था। बड़ी बहिन सुनन्दा की शादी क्षत्रियकूण्ड में हुई थी और उसके जमाली नाम का एक पुत्र था। महावीर स्वामी की प्रियदर्शना नामक पुत्री से उसका विवाह हुआ था। आगे चलकर जमाली ने अपनी स्त्री-सहित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001054
Book TitleChar Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1989
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, History, & E000
File Size8 MB
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