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________________ १४२ : भगवान् पार्श्वनाथ की विरासत पार्श्वनाथ ने वही कही है जिसको मैं भी कहता हूँ, और जब हम सारे श्वेतांबर-दिगंबर श्रुत द्वारा यह भी देखते हैं कि, महावीर का तत्त्वज्ञान वही है जो पावपिस्यिक परंपरा से चला आता है, तब हमें 'पूर्व' शब्द का अर्थ समझने में कोई दिक्कत नहीं आती। पूर्व श्रुत का अर्थ स्पष्टतः यही है कि, जो श्रुत महावीर के पूर्व से पाश्र्वापत्यिक परम्परा द्वारा चला आता था और जो किसी न किसी रूप में महावीर को प्राप्त हुआ। प्रो० याकोबी आदि का भी ऐसा ही मत है। जैन श्रुत के मुख्य विषय नवतत्त्व, पंच अस्तिकाय. आत्मा और कर्म का सम्बन्ध, उसके कारण, उसकी निवृत्ति के उपाय, कर्म का स्वरूप इत्यादि हैं। इन्हीं विषयों को महावीर और उनके शिष्यों ने संक्षेप से विस्तार और विस्तार से संक्षेप कर भले ही कहा हो, पर वे सब विषय पापित्यिक परंपरा के पूर्ववर्ती श्रुत में किसी न किसी रूप में निरूपित थे, इस विषय में कोई सन्देह नहीं। एक भी स्थान में महावीर या उनके शिष्यों में से किसी ने ऐसा नहीं कहा कि, जो महावीर का श्रुत है वह अपूर्व अर्थात् नवोत्पन्न है। चौदह पूर्व के विषयों की एवं उनके भेद प्रभेदों की जो टूटी-फूटी यादी नन्दीसूत्र में तथा धवला में मिलती है उसका आचारांग आदि ग्यारह अंगों में तथा अन्य उपांग आदि शास्त्रों में प्रतिपादित विषयों के साथ मिलान करते हैं तो, इसमें सन्देह ही नहीं रहता कि, जैन परंपरा के आचार-विचार विषयक मुख्य मुद्दों की चर्चा, पाश्र्वापत्यिक परंपरा के पूर्वश्रुत और महावीर की परंपरा के अंगोपांग श्रुत में समान ही है। इससे मैं अभी तक निम्नलिखित निष्कर्ष पर आया हं :-- (१) पार्श्वनाथीय परंपरा का पूर्वश्रुत महावीर को किसी-न१. डा याकोबी The name (पूर्व) itself testifies to the fact that the Purvas were superseded by a new canon, for Purva means former, earlier -Sacred Books of the East, Vol XXII Introduction P. XLIV, २. नन्दीसूत्र, पत्र १०६ अ से । ३. षट्खण्डागम (धवला टीका), पुस्तक १, पृ० ११४ से। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001054
Book TitleChar Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1989
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, History, & E000
File Size8 MB
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