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________________ १३८ : भगवान् पार्श्वनाथ की विरासत एक ज्ञातपुत्र महावीर ही निग्रंथ संघ के अगुवा रूप से या तीर्थकर रूप से माने जाने लगे। महावीर के उपदेशों में जितना भार कषायविजय पर है--जो कि निग्रंथजीवन का मुख्य साध्य है-उतना भार अन्य किसी विषय पर नहीं है। उनके इस कठोर प्रयत्न के कारण ही चार याम का नाम स्मृतिशेष बन गया व पाँच महाव्रत संयमधर्म के जीवित अंग बने । महावीर के द्वारा पंच महाव्रत-धर्म के नये सुधार के बारे में तो श्वेताम्बर-दिगम्बर एकमत हैं, पर पाँच महाव्रत से क्या अभिप्रेत है, इस बारे में विचारभेद अवश्य है। दिगंबराचार्य वट्टकेर का "मूलाचार" नामक एक ग्रन्थ है-जो संग्रहात्मक है-उसमें उन्होंने पाँच महाव्रत का अर्थ पाँच यम न बतलाकर केवल जैन परंपरापरिचित पाँच चारित्र बतलाया है। उनका कहना है कि, महावीर के पहले मात्र सामायिक के ही विस्तार रूप से अन्य चार चारित्र बतलाये, जिससे महावीर पंच महाव्रत धर्म के उपदेशक माने जाते हैं । आचार्य बट्टकेर की तरह पूज्यपाद, अकलंक, आशाधर आदि लगभग सभी दिगंबराचार्य और दिगम्बर विद्वानों का वह एक ही अभिप्राय है। निःसन्देह श्वेतांबर-परंपरा के पंच महाव्रतधर्म के खुलासे से दिगंबरपरंपरा का तत्संबंधी खुलासा जुदा पड़ता है । भद्रबाहुकर्तृक मानी जानेवाली नियुक्ति में भी छेदोपस्थापना चारित्र को दाखिल करके पांच चारित्र महावीरशासन में प्रचलित किये जाने की कथा निर्दिष्ट है, पर यह कथा केवल चारित्र-परिणाम की तीव्रता, तीव्रतरता और तीव्रतमता के तारतम्य पर एवं भिन्न-भिन्न दीक्षित व्यक्ति के अधिकार पर प्रकाश डालती है, न कि समग्र निग्रंथों के लिये अवश्य स्वीकार्य पंच महाव्रतों के ऊपर । जबकि महावीर का पंच महाव्रतधर्म-विषयक सुधार निग्रंथ दीक्षा लेनेवाले सभी के लिए एकसा रहा, ऐसा भगवती आदि ग्रन्थों से तथा बौद्ध पिटक निर्दिष्ट 'चातुमि-संवर-संबुतो इस विशेषण से फलित होता है। इसके समर्थन में १. देखो-पं० जुगल किशोर जी मुख्तार कृत जैनाचार्यों का शासन भेद, परिशिष्ट 'क'। २. "चातु-याम-संवर-संवुतो" इस विशेषण के बाद "सव्व-वारि वारितो" इत्यादि विशेषण ज्ञातपुत्र महावीर के लिए आते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001054
Book TitleChar Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1989
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, History, & E000
File Size8 MB
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