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________________ ११६ : भ० महावीर की मंगल विरासत त्मिक भूमि कहते हैं बस इसी अर्थ में । भगवान् महावीर ने जिस मांगलिक विरासत को हमें दिया है या सौंपा है वह कौन सी है यही आज विचारणीय है। एक बात स्पष्ट समझ ली जानी चाहिए कि सिद्धार्थनन्दन या त्रिशलापुत्र स्थूल देहधारी महावीर के विषय में हम मुख्य रूप से यहाँ विचार नहीं करते । उनका ऐतिहासिक या ग्रन्थ-बद्ध स्थूल जीवन तो हमेशा हम पढ़ते सुनते आये हैं । आज जिस महावीर का मैं निर्देश करता हूं वह शुद्ध बुद्ध वासनामुक्त चेतनस्वरूप महान् वोर को मन में रख कर उसका निर्देश करता हूं। ऐसे महावीर में सिद्धार्थनन्दन का तो समावेश हो ही जाता है। इसके अलावा वैसे सभी शुद्ध बुद्ध चेतन का भी समावेश हो जाता है । इस महावीर में किसी जात-पाँत का या देशकाल का भेद नहीं है। वे वोतरागाद्वैतरूप से एक हो हैं । इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर ही अनेक स्तुतिकारों ने स्तुति की है । जब मानतुङ्ग आचार्य स्तुत्य तत्त्व को बुद्ध कहते हैं, शंकर कहते हैं, विधाता कहते हैं और पुरुषोत्तम कहते हैं, तब वे सद्गुणाहत को भूमिका का ही स्पर्श करते हैं। आनन्दघन 'राम, रहिमान, कान' आदि सम्प्रदायों में प्रचलित शब्दों का प्रयोग करके ऐसे ही किसी परमतत्त्व का स्तवन करते हैं । आज हम इसी प्रकार से वीर को समझने की कोशिश करें। भगवान् महावीर ने जिस विरासत को हमें दिया है उसे उन्होंने अपने विचार में ही संगृहोत नहीं रखा था किन्तु उन्होंने उसे अपने जीवन में उतार कर परिपक्व करने के बाद ही हमारे समक्ष रखा है। अतएव वह विरासत उपदेश में नहीं समा जातो, उसका तो आचरण भी करना चाहिए। भगवान् महावीर की विरासत को संक्षेप में चार भागों में बताया जा सकता है-(१) जीवनदृष्टि, (२) जीवनशुद्धि, (३) जीवनव्यवहार का परिवर्तन और (४) पुरुषार्थ । ___भगवान् की जीवन विषयक दृष्टि क्या थी यही प्रथम समझने का यत्न करें। जीवनदृष्टि अर्थात् जीवन का मूल्य परखने की दृष्टि । हम सभी अपने-अपने जीवन का मूल्य आँकते हैं। अधिक हआ तो जिस कुटुम्ब, जिस ग्राम, जिस समाज या जिस राष्ट्र के साथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001054
Book TitleChar Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1989
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, History, & E000
File Size8 MB
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