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________________ ६० आगम-युग का जैन-दर्शन ८. मरने के बाद तथागत नहीं होते ? ६. मरने के बाद तथागत होते भी हैं, और नहीं भी होते ? १०. मरने के बाद तथागत न― होते हैं, और न नहीं होते हैं ? 63 इन प्रश्नों का संक्षेप तीन ही प्रश्न में हैं - १. लोक की नित्यता अनित्यता और सान्तता - निरन्तता का प्रश्न, २. जीव- शरीर के भेदाभेद का प्रश्न और ३. तथागत की मरणोत्तर स्थिति अस्थिति अर्थात् जीव की नित्यता- अनित्यता का प्रश्न ४३ । ये ही प्रश्न भगवान् बुद्ध के जमाने के महान् प्रश्न थे और इन्हीं के विषय में भगवान् बुद्ध ने एक तरह से अपना मत देते हुए भी वस्तुतः विधायक रूप से कुछ नहीं कहा । यदि वे लोक या जीव को नित्य कहते, तो उनको उपनिषद् - मान्य शाश्वतवाद को स्वीकार करना पड़ता है और यदि वे अनित्य पक्ष की स्वीकार करते तब चार्वाक जैसे भौतिकवादी द्वारा संमत उच्छेदवाद को स्वीकार करना पड़ता । इतना तो स्पष्ट है कि उनको शाश्वतवाद में भी दोष प्रतीत हुआ था और उच्छेदवाद को भी वे अच्छा नहीं समझते थे । इतना होते हुए भी अपने नये वाद को कुछ नाम देना उन्होंने पसंद नहीं किया और इतना ही कह कर रह गए, कि ये दोनों वाद ठीक नहीं । अतएव ऐसे प्रश्नों को अव्याकृत, स्थापित, प्रतिक्षिप्त बता दिया और कह दिया कि लोक अशाश्वत हो या शाश्वत, जन्म है ही, मरण है ही । मैं तो इन्हीं जन्म-मरण के विघात को बताता हूँ । यही मेरा व्याकृत है । और इसी से तुम्हारा भला होने वाला है । शेष लोकादि की शाश्वतता आदि के प्रश्न अव्याकृत हैं, उन प्रश्नों का मैंने कुछ उत्तर नहीं दिया, ऐसा ही समझो । ४४ इतनी चर्चा से स्पष्ट है कि भगवान बुद्ध ने अपने मन्तव्य को विधि रूप से न रख कर अशाश्वतानुच्छेदवाद को ही स्वीकार किया है । अर्थात् उपनिषद्मान्य नेति नेति की तरह वस्तुस्वरूप का निषेध-परक व्याख्यान ४३ इस प्रश्न को ईश्वर के स्वतन्त्र अस्तित्व या नास्तित्व का प्रश्न भी कहा जा सकता है । ४४ मज्झिमनिकाय चूलमालुंक्य सुत्त ६३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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