SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सव । आगम-साहित्य की रूप-रेखा २७ १० वीरस्तवः । ६. छेदसूत्र-१ निशीथ २ महानिशीथ ३ व्यवहार ४ दशाश्रुत स्कंध ५ बृहत्कल्प ६ जीतकल्प । ४. मूल-१ उत्तराध्ययन २ दशवकालिक ३ आवश्यक ४ पिंड नियुक्ति । २. चूलिकासूत्र-१ नन्दीसूत्र २ अनुयोगद्वार । आगमों का रचनाकाल : जैसा कि हमने देखा, आगमशब्दवाच्य एक ग्रन्थ नहीं, किन्तु अनेक व्यक्ति कर्तृक अनेक ग्रंथों का समुदाय है । अतएव आगम की रचना का कोई एक काल बताया नहीं जा सकता। भगवान् महावीर का उपदेश विक्रम पूर्व ५०० वर्ष में शुरू हुआ । अतएव उपलब्ध किसी भी आगम की रचना का उसके पहले होना सभव नहीं है, और दूसरी ओर अंतिम वाचना के आधार पर पुस्तक लेखन वलभीमें विक्रम सं० ५१० (मतान्तर से ५२३) में हुआ। अतएव तदन्तर्गत कोई शास्त्र विक्रम ५२५ के बाद का नहीं हो सकता। इस मर्यादा को ध्यान में रखकर हमें सामान्यतः आगम की रचना के काल का विचार करना है। ___अंग ग्रथ गणधर कृत कहे जाते हैं, किन्तु उनमें सभी एक से प्राचीन नहीं हैं । आचारांग के ही प्रथम और द्वितीय श्रुतस्कंध भाव और भाषा में भिन्न हैं । यह कोई भी देखने वाला कह सकता है । प्रथम श्रुतस्कंध द्वितीय से ही नहीं, किन्तु समस्त जैनवाङ्मय में सबसे प्राचीन अंश है । उसमें परिवर्धन और परिवर्तन सर्वथा नहीं है, यह तो नहीं कहा जा सकता । किन्तु उसमें नया सबसे कम मिलाया गया है, यह तो ४७ दशप्रकीर्णक कुछ परिवर्तन के साथ भी गिनाए जाते हैं, देखो केनोनिकल लिटरेचर प्रोफ जैन्स पृ० ४५-५१. ४८ किसी के मत से प्रोधनियुक्ति भी इसमें समाविष्ट है. कोई पिण्डनियुक्ति के . ___ स्थान में प्रोधनियुक्ति को मानते हैं. ४९ चतुःशरण और भक्तपरिज्ञा जैसे प्रकीर्णक जिनका उल्लेख नन्दी में नहीं है, वे इसमें अपवाद हैं। ये ग्रन्थ कब आगमान्तर्गत कर लिए गए कहना कठिन है. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy