SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ आगम-युग का जैन-दर्शन . करने लगे हैं, कि दशवकालिक आदि शास्त्र के प्रणेता गणधर नहीं, किन्तु शय्यंभव आदि स्थविर हैं, तथापि जिन लोगों का आगम के टीकाटिप्पणियों पर कोई विश्वास नहीं तथा जिन्हें संस्कृत टीका ग्रन्थों के अभ्यास के प्रति अभिरुचि नहीं है उन साम्प्रदायिक मनोवृत्ति वालों का यही विश्वास प्रतीत होता है, कि अंग और अंगबाह्य दोनों प्रकार के आगम के कर्ता गणधर ही थे, अन्य स्थविर नहीं । भवेताम्बरों के आगम ग्रंथ : _ यह तो कहा ही जा चुका है, कि अंगों के विषय में किसी का भी मतभेद नहीं । अतएव श्वेताम्बरों को भी पूर्वोक्त १२ अंग मान्य हैं, जिन्हें अन्य दिगम्बरादि ने माना है । अन्तर यही है, कि दिगम्बरों ने १२ अंगों को पूर्वोक्त क्रम से विच्छेद माना, जबकि श्वेताम्बरों ने सिर्फ अन्तिम अंग का विच्छेद माना । उनका कहना है, कि भगवान् महावीर के निर्वाण के १००० वर्ष बाद ही पूर्वगत का विच्छेद४६ हुआ है। जब तक उसका विच्छेद नहीं हुआ था, आचार्यों ने पूर्व के विषयों को लेकर अनेक रचनाएँ की थीं। इस प्रकार की अधिकांश रचनाओं का समावेश अंग बाह्य में किया गया है। कुछ ऐसी भी रचनाएँ हैं, जिनका समावेश अंग में भी किया गया है। दिगम्बरों ने १४, स्थानकवासियों ने २१ और श्वेताम्बरों ने ३४ अंगबाह्य ग्रन्थ माने हैं। श्वेताम्बरों के मत से उपलब्ध ११ अंग और ३४ अंगबाह्य ग्रन्थों की सूची इस प्रकार है ११. अंग-पूर्वोक्त आचारांग आदि । १२. उपांग-औपपातिक आदि पूर्वोक्त । १०. प्रकीर्णक-१ चतुःशरण २ आतुरप्रत्याख्यान ३ भक्तपरिज्ञा ४ संस्तारक ५ तंदुलवैचारिक ६ चन्द्रवेध्यक ७ देवेन्द्रस्तव ८ गणिविद्या ६ महाप्रत्याख्यान ४५ शास्त्रोद्वार मीमांसा पृ० ४३, ४५, ४७. ४६ भगवती-२-८. तित्थोगा. ८०१. सत्तरिसयठारण-३२७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy