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________________ १८ आगम-युग का जैन-दर्शन जब तक इस प्रकार के अनुयोगों का विभाग नहीं था, तब तक आचार्यों के लिए प्रत्येक सूत्रों में विस्तार से नयावतार करना भी आवश्यक था, किन्तु जब से अनुयोगों का पार्थक्य किया गया, तब से नयावतार भी अनावश्यक हो गया ।२८ आर्यरक्षितके बाद श्रुतका पठन-पाठन पूर्ववत् नहीं चला होगा और पर्याप्त मात्रा में शिथिलता हुई होगी, यह उक्त बातसे स्पष्ट है । अतएव श्रुतमें उत्तरोत्तर ह्रास होना भी स्वाभाविक है । स्वयं आर्यरक्षित के लिए भी कहा गया है, कि वे सम्पूर्ण नव पूर्व और दशभ पूर्व के २४ यविक मात्र के अभ्यासी थे। आर्य रक्षित भी अपने सभी शिष्यों को ज्ञात श्रुत देने में असमर्थ ही हुए। उनकी जीवन कथा में कहा गया है, कि उनके शिष्यों में से एक दुर्बलिका पुष्पमित्र ही सम्पूर्ण नवपूर्व पढ़ने में समर्थ हुआ, किन्तु वह भी उसके अभ्यास के न कर सकने के कारण नवम पूर्व को भूल गया । उत्तरोत्तर पूर्वो के विशेषपाठियों का ह्रास होकर एक समय वह आया, जब पूर्वो का विशेषज्ञ कोई न रहा। यह स्थिति वीर निर्वाण के एक हजार वर्ष बाद हुई । किन्तु दिगम्बरों के कथनानुसार वीरनिर्वाण सं० ६८३ के बाद हुई। माथुरी वाचना: नन्दी सूत्र की चूर्णि में उल्लेख है.', कि द्वादशवर्षीय दुष्काल के कारण ग्रहण, गुणन एवं अनुप्रेक्षा के अभाव में सूत्र नष्ट हो गया । आर्य स्कंदिल के सभापतित्व में बारह वर्ष के दुष्काल के बाद साधुसंघ मथुरा में एकत्र हुआ और जिसको जो याद था, उसके आधार पर कालिकश्रुत को व्यवस्थित कर लिया गया । क्योंकि यह वाचना मथुरा में हुई । अतएव यह माथुरी वाचना कहलाई। कुछ लोगों का कहना है, कि सूत्र २८ आवश्यक नियुक्ति ७६२. विशेषा० २२७९. २२ विशेषा० टी० २५११. ३० भगवती० २.८. सत्तरिसयठाण-३२७. 3१ नन्दो चूणि पृ० ८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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