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आगम-साहित्य की रूप-रेखा १७ दिगम्बर २५
श्वेताम्बर२६ विशाखाचार्य १० वर्ष स्थूलभद्र ४५ वर्ष प्रोष्ठिल १६ , महागिरि
३० , क्षत्रिय
१७ , सुहस्तिन् जयसेन
गुणसुन्दर नागसेन कालक
,, (प्रज्ञापना कर्ता) सिद्धार्थ
स्कंदिल (सांडिल्य) धृतिषेण
रेवती मित्र विजय १३ , आर्य मंगू बुद्धिलिंग
आर्य धर्म २४ ॥ देव १४ ,, भद्रगुप्त
३६ ॥ धर्मसेन . १६ ,, श्रीगुप्त
वज्र
१८३ वर्ष
४१४ वर्ष +१६२=३४५
+१७०=५८४ आर्य वज्र के बाद आर्य रक्षित हुए। १३ वर्ष तक युग-प्रधान रहे । उन्होंने शिष्यों को भविष्य में मति, मेधा, धारणा आदि से रहित जान करके अनुयोगों का विभाग कर दिया। अभी तक किसी एक सूत्र की व्याख्या चारों प्रकार के अनुयोगों से होती थी। उसके स्थान में उन्होंने विभाग कर दिया कि अमुक सूत्र की व्याख्या केवल एक ही अनुयोगपरक की जाएगी जैसे-चरणकरणानुयोग में कालिक श्रुत ग्यारह अंग, महाकल्पश्रुत और छेदसूत्रों का समावेश किया। धर्मकथानुयोग में ऋषिभाषितों का; गणितानुयोग में सूर्यप्रज्ञप्ति का, और दृष्टिवाद का द्रव्यानुयोग में समावेश कर दिया ।
२५ धवला पु० १ प्रस्ता० पृ० २६. २० मेगतुंग-विचारणी . वीरनि० पृ० ६४.
२७ आवश्यक नियुक्ति ३६३-७७७. विशेषावश्यकभाष्य २२८४-२२६५. Jain Education International For Private & Personal Use Only
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