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आगम-साहित्य की रूप-रेखा
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तो नष्ट नहीं हुआ, किन्तु प्रधान अनुयोगधरों का अभाव हो गया । एक स्कंदिल आचार्य ही बचे थे, जो अनुयोगधर थे। उन्होंने मथुरा में अन्य साधुओं को अनुयोग दिया। अतएव वह माथुरी वाचना कहलाई।
___ इससे इतना तो स्पष्ट है, कि दुबारा भी दुष्काल के कारण श्रुतकी दुरवस्था हो गई थी। इस बार की संकलना का श्रेय आचार्य स्कंदिल को है । मुनि श्री कल्याणविजयजी ने आचार्य स्कंदिल का युगप्रधानत्व काल वीरनिर्वाण संवत् ८२७ से ८४० तक माना है। अतएव यह वाचना इसी बीच हुई होगी ।३२ इस वाचना के फलस्वरूप आगम लिखे भी गए। वालमी वाचना:
जब मथुरा में वाचना हुई थी, उसी काल में वलभी में नागार्जुन सूरि ने श्रमणसंघ को एकत्र करके आगमों को व्यवस्थित करने का प्रयत्न किया था। और 'वाचक नागार्जुन और एकत्रित संघ को जो-जो आगम और उनके अनुयोगों के उपरांत प्रकरण ग्रन्थ याद थे, वे लिख लिए गए और विस्मृत स्थलों को पूर्वापर संबंध के अनुसार ठीक करके उसके अनुसार वाचना दी गई33 ।'' इसमें प्रमुख नागार्जुन थे। अतएव इस वाचना को 'नागार्जुनीय वाचना' भी कहते हैं । देवधिगणि का पुस्तक-लेखन :
"उपर्युक्त वाचनाओं के सम्पन्न हुए करीब डेढ़ सौ वर्ष से अधिक समय व्यतीत हो चुका था, उस समय फिर वलभी नगर में देवधिगणि क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में श्रमणसंघ इकट्ठा हुआ, और पूर्वोक्त दोनों वाचनाओं के समय लिखे गए सिद्धान्तों के उपरान्त जो-जो ग्रन्थ-प्रकरण मौजूद थे, उन सब को लिखाकर सुरक्षित करने का निश्चय किया । इस श्रमण-समवसरण में दोनों वाचनाओं के सिद्धान्तों का परस्पर समन्वय किया गया और जहाँ तक हो सका भेदभाव मिटा कर उन्हें एकरूप
३२ वीरनि पु० १०४. 33 वीरनि० पृ० ११०.
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