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________________ ३०४ आगम-युग का जन-दर्शन उस पर विचार कर ही रहे थे, उतने में श्रुतदेवता ने उस पुस्तक को उनसे छीन लिया । आचार्य मल्लवादी दुःखित हुए, किन्तु उपाय था नहीं । अत एव श्रुतदेवता की आराधना के लिए गिरिखण्ड पर्वत की गुफा में गए और तपस्या शुरू की । श्रुतदेवता ने उनकी धारणाशक्ति की परीक्षा लेने के लिए पूछा 'मिष्ट क्या है ।' मल्लवादी ने उत्तर दिया 'वाल' । पुनः छह मास के बाद श्रुतदेवी ने पूछा 'किसके साथ ?' मुनिने उत्तर दिया 'गुड़ और घी के साथ ।' आचार्य की इस स्मरणशक्ति से प्रसन्न हो कर श्रुतदेवता ने वर मांगने को कहा । आचार्य ने कहा कि नयचक्र वापस दे दें । तब श्रुतदेवी ने उत्तर दिया कि उस ग्रन्थ को प्रकट करने से द्व ेषी लोग उपद्रव करते हैं, अत एव वर देती हूँ कि तुम विधिनियमभंग इत्यादि तुम्हें ज्ञात एक गाथा के आधार पर ही उसके संपूर्ण अर्थ का ज्ञान कर सकोगे । ऐसा कह कर देवी चली गई । इसके बाद आचार्य ने नयचक्र ग्रन्थ की दस हजार श्लोकप्रमाण रचना की । नयचक्र के उच्छेद की परम्परा श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्परात्रों में समान रूप से प्रचलित है । आचार्य मल्लवादी की कथा में जिस प्रकार नयचक्र के उच्छेद को वर्णित किया गया है यह तो हमने निर्दिष्ट कर ही दिया है । श्रीयुत प्रेमीजी ने माइल्ल धवल के नयचक्र की एक गाथा" अपने लेख में उद्धृत की है, उससे पता चलता है कि दिगम्बर परंपरा में भी नयचक्र के उच्छेद की कथा है । जिस प्रकार श्वेताम्बर परंपरा में मल्लवादी ने नयचक्र का उद्धार किया यह मान्यता रूढ़ है, उसी प्रकार मुनि देवसेन ने भी नयचक्र का उद्धार किया है ऐसी मान्यता माइल्ल धवल के कथन से फलित होती है । इससे यह कहा जा सकता है कि यह लुप्त नयचक्र श्वेताम्बर दिगम्बर को समान रूप से मान्य होगा । कथा का विश्लेषण - नयचक्र और पूर्व : विद्यमान नयचक्रटीका के आधार पर नयचक्र का जो १५ " वुसमीरणेण पोयं पेरियसंतं जहा ति ( चि) रं नट्ठ | सिरिवेवसेण मुणिणा तय नयचक्कं पुणो रइयं" देखो जैन साहित्य और इतिहास पृ. १६५ । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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