________________
प्राचार्य मल्लवादी का नयचक्र
३०३
परम्परा के अनुसार नयचक्र के कर्ता प्राचार्य मल्लवादी सौराष्ट्र के वलभिपुर के निवासी थे । उनकी माता का नाम दुर्लभदेवी था। उनका गृहस्थ अवस्था का नाम 'मल्ल' था, किन्तु वाद में कुशलता प्राप्त करने के कारण मल्लवादी रूप से विख्यात हए। उनके दीक्षागुरु का नाम जिनानन्द था जो संसार पक्ष में उनके मातुल होते थे। भृगुकच्छ में गुरु का पराभव बुद्धानन्द नामक बौद्ध विद्वान् ने किया था; अतएव वे वलभी आगए । जब 'मल्लवादी' को यह पता लगा कि उनके गुरु का वाद में पराजय हुआ है, तब उन्होंने स्वयं भृगुकच्छ जा कर वाद किया और बुद्धानन्द को पराजित किया ।
इस कथा में सम्भवतः सभी नाम कल्पित हैं। वस्तुत: आचार्य मल्लवादी का मूल नयचक्र जिस प्रकार कालग्रस्त हो गया उसी प्रकार उनके जीवन की सामग्री भी कालग्रस्त हो गई है । बुद्धानन्द और जिनानन्द ये नाम समान हैं और सिर्फ आराध्यदेवता के अनुसार कल्पित किए गए हों ऐसा संभव है। मल्लवादी का पूर्वावस्था का नाम 'मल्ल' थायह भी कल्पना ही लगता है । वस्तुतः इन आचार्य का नाम कुछ और ही होगा और 'मल्लवादी' यह उपनाम ही होगा। जो हो, परम्परा में उन आचार्य के विषय में जो एक गाथा चली आती थी, उसी गाथा को लेकर उनके जीवन की घटनाओं का वर्णन किया गया हो, ऐसा संभव है । नयचक्र की रचना के विषय में पौराणिक कथा दी गई है, उससे भी इस कल्पना का समर्थन होता है।
पौराणिक कथा इस प्रकार है
पंचम पूर्व ज्ञानप्रवाद में से नयचक्र ग्रन्थ का उद्धार पूर्वषियों ने किया था उसके बारह आरे थे । उस नयचक्र के पढ़ने पर श्रुतदेवता कुपित होती थी, अत एव आचार्य जिनानन्द ने जब कहीं बाहर जा रहे थे, मल्लवादी से कहा कि उस नयचक्र को पढ़ना नहीं। क्योंकि निषेध किया गया, मल्लवादी की जिज्ञासा तीव्र हो गई। और उन्होंने उस पुस्तक को खोल कर पढ़ा तो प्रथम 'विधिनियमभंग' इत्यादि गाथा पढ़ी। १४ कथा के लिए देखो, प्रभावक-चरितका-मल्लवादी प्रबंध ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org