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________________ ३०२ भागम-युग का जन-दर्शन पना की है । किन्तु भगवान् महावीर के बाद तो भारतीय दर्शन में तात्त्विक मन्तव्यों की बाढ़ सी आ गई है । सामान्यरूप से कह देना कि सभी नयों का - मन्तव्यों का - मतवादों का समूह अनेकान्तवाद है, यह एक बात है और उन मन्तव्यों को विशेषरूप से विचारपूर्वक अनेकान्तवाद में यथास्थान स्थापित करना यह दूसरी बात है । प्रथम बात तो अनेक आचार्यों ने कही है; किन्तु एक-एक मन्तव्य का विचार करके उसे नयान्तर्गत करने की व्यवस्था करना यह उतना सरल नहीं । नयचक्रकालीन भारतीय दार्शनिक मन्तव्यों की पृष्ठभूमि का विचार करना, समग्र तत्त्वज्ञान के विकास में उस उस मन्तव्य का उपयुक्त स्थान निश्चित करना, नये-नये मन्तव्यों के उत्थान की अनिवार्यता के कारणों की खोज करना, मन्तव्यों के पारस्परिक विरोध और बलाबल का विचार करना - यह सब कार्य उन मन्तव्यों के समन्वय करनेवाले के लिए अनिवार्य हो जाते हैं । अन्यथा समन्वय की कोई भूमिका ही नहीं बन सकती । नयचक्र में प्राचार्य मल्लवादी ने यह सब अनिवार्य कार्य करके अपने अनुपम दार्शनिक पाण्डित्य का तो परिचय दिया ही है और साथ में भारतीय तत्त्वचिन्तन के इतिहास की अपूर्व सामग्री का भंडार भी आगामी पीढ़ी के लिए छोड़ने का श्रेय भी लिया है । इस दृष्टि से देखा जाय तो भारतीय समग्र दार्शनिक वाङ्मय में नयचक्र का स्थान महत्वपूर्ण मानना होगा । नयचक्र की रचना की कथा : भारतीय साहित्य में सूत्रयुग के बाद भाष्य का युग है। सूत्रों का युग जब समाप्त हुआ तब सूत्रों के भाष्य लिखे जाने लगे पातञ्जलमहाभाष्य, न्यायभाष्य, शाबरभाष्य, प्रशस्तपादभाष्य, अभिधर्म कोषभाष्य, योगसूत्र का व्यासभाष्य, तत्त्वार्थाधिगमभाष्य, विशेषावश्यक भाष्य, शांकरभाष्य, आदि । प्रथम भाष्यकार कौन है यह निश्चयपूर्वक कहना कठिन है । इस दीर्घकालीन भाष्ययुग की रचना नयचक्र है । १3 देखो प्रस्तुत पुस्तक का प्रथम द्वितीय खण्ड । Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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