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________________ १८२ भागम-युग का जैन-दर्शन .. अनुयोगो नाम स यत्तद्विधानां तद्विखरेव साधं तन्त्रे तन्कदेशे वा प्रश्नः प्रश्नैकदेशो वा ज्ञानविज्ञानवचनपरीक्षार्यमादिश्यते, यथा नित्यः पुरुष इति प्रतिज्ञाते यत् परः 'को हेतुः' इत्याह सोऽनुयोगः । ___स्थानांग का अनुयोगी प्रश्न वस्तुतः चरक के अनुयोग से अभिन्न होना चाहिए ऐसा चरक के उक्त लक्षण से स्पष्ट है । ४. अनुलोम प्रश्न वह है जो दूसरे को अनुकूल करने के लिए किया जाता है जैसे कुशल प्रश्न । ५. जिस वस्तु का ज्ञान पृच्छक और प्रष्टव्य को समान भाव से हो फिर भी उस विषय में पूछा जाय तब वह प्रश्न तथाज्ञान प्रश्न- है । जैसे भगवती में गौतम के प्रश्न । ६. इससे विपरीत अतथाज्ञान प्रश्न है। इन प्रश्नों के प्रसंग में उत्तर की दृष्टि से चार प्रकार के प्रश्नों का जो वर्णन बौद्धग्रन्थों में आता है उसका निर्देश उपयोगी है--- १. कुछ प्रश्न ऐसे हैं जिनका है या नहीं में उत्तर दिया जाता है-एकांशव्याकरणीय । २. कुछ प्रश्न ऐसे हैं जिनका उत्तर प्रतिप्रश्न के द्वारा दिया जाता है-प्रतिपृच्छाव्याकरणीय । ३. कुछ प्रश्न ऐसे हैं जिनका उत्तर विभाग करके अर्थात् एक अंश में 'है' कहकर और दूसरे अंश में 'नहीं' कहकर दिया जाता हैविभज्यव्याकरणीय । ४. कुछ प्रश्न ऐसे हैं जो स्थापनीय-अव्याकृत हैं जिनका उत्तर दिया नहीं जाता। ७. छल-जाति-स्थानांग सूत्र में हेतु शब्द का प्रयोग नाना अर्थ में हुआ है । प्रमाण सामान्य अर्थ में हेतुशब्द का प्रयोग प्रथम (पृ० ६३) बताया गया है। साधन अर्थ में हेतुशब्द का प्रयोग भी हेतुचर्चा में १४ दोघ० ३३ । मिलिन्द पृ० १७६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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