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________________ १ प्रत्यक्ष १ केवल १ अवधि १ भवप्रत्ययिक १ ऋजुमति २ नोकेवल ज्ञान (सूत्र ७१ ) T २ क्षायोपशमिक I २ मन:पर्यय १ श्रुतनिःसृत २ अश्रुतनिःसृत प्रमाणन० २.२० १ १ आभिनिबोधिक Jain Education International प्रमारण-खण्ड १ अर्थावग्रह व्यञ्जनावग्रह २ विपुलमति १ अर्थावग्रह १ अंगप्रविष्ट १२ २ व्यञ्जनावग्रह १३१ २ परोक्ष For Private & Personal Use Only २ श्रुतज्ञान २ अंगबाह्य I १ आवश्यक २ आवश्यकव्यतिरिक्त १ कालिक इसी भूमिका के आधार पर उमास्वाति ने भी प्रमाणों को प्रत्यक्ष और परोक्ष में विभक्त करके उन्हीं दो में पंच ज्ञानों का समावेश किया है । बाद में होने वाले जैनतार्किकों ने प्रत्यक्ष के दो भेद बताए हैंविकल और सकल' । केवल का अर्थ होता है सर्व--सकल और नो केवल का अर्थ होता है, असर्व - विकल । अतएव तार्किकों के उक्त वर्गीकरण का मूल स्थानांग जितना तो पुराना मानना ही चाहिए । 1 २ उत्कालिक www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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