________________
प्रस्तावना ।
५ देश आदिष्ट है सद्भावपर्यायोंसे और देश आदिष्ट है तदुभयपर्यायोंसे खेत एव
द्विप्रदेशिक स्कन्ध आत्मा है और अवक्तव्य है। ६ देश आदिष्ट है असद्भावपर्यायोंसे और देश आदिष्ट है तदुभयपर्यायोंसे अतएव
द्विप्रदेशिक स्कन्ध आत्मा नहीं है और अवक्तव्य है । इसके बाद गौतमने त्रिप्रदेशिक स्कन्धके विषयमें वैसा ही प्रश्न पूछा तब उत्तर निम्नलिखित भंगोंमें मिला
(१) १ त्रिप्रदेशिक स्कन्ध स्यादात्मा है। (२) २ त्रिप्रदेशिक स्कन्ध स्यादात्मा नहीं है। (३) ३ विप्रदेशिक स्कन्ध स्यादवक्तव्य है। (४) ४ त्रिप्रदेशिक स्कन्ध स्यादात्मा है और आत्मा नहीं है।
५त्रिप्रदेशिक स्कन्ध स्यादात्मा है. (२) आत्माएँ नहीं हैं।
६ त्रिप्रदेशिक स्कन्ध स्यादात्माएँ (२) हैं. आत्मा नहीं है। (५) ७ त्रिप्रदेशिक स्कन्ध स्यादात्मा है और अवक्तव्य है।
८ त्रिप्रदेशिक स्कन्ध स्यादात्मा है और (२) अवक्तव्य हैं।
९ त्रिप्रदेशिक स्कन्ध स्याद् (२) आत्माएँ हैं, और अवक्तव्य है। (६) १० त्रिप्रदेशिक स्कन्ध स्याद् आत्मा नहीं है और अवक्तव्य है।
११ त्रिप्रदेशिक स्कंध स्यादात्मा नहीं है और (२) अवक्तव्य हैं।
१२ त्रिप्रदेशिक स्कन्ध स्याद् (२) आत्माएँ नहीं हैं और अवक्तव्य है । (७) १३ त्रिप्रदेशिक स्कंध स्यादात्मा है, आत्मा नहीं है और अवक्तव्य है। गौतमने जब इन भंगोंकी योजनाका अपेक्षाकारण पूछा तब भगवान्ने उत्तर दिया कि
(१) १ त्रिप्रदेशिक स्कन्ध आत्माके आदेशसे आत्मा है । (२) २ त्रिप्रदेशिक स्कन्ध परके आदेशसे आत्मा नहीं है । (३) ३ त्रिप्रदेशिक स्कन्ध तदुभयके आदेशसे अवक्तव्य है । (१) ४ देश आदिष्ट है सद्भावपर्यायोंसे और देश आदिष्ट है असद्भावपर्यायोंसे अत
एव त्रिप्रदेशिक स्कन्ध आत्मा है और आत्मा नहीं है। ५ देश आदिष्ट है सद्भावपर्यायोंसे और (२) देश आदिष्ट हैं असद्भावपर्यायोंसे __ अत एव त्रिप्रदेशिक स्कन्ध आत्मा है और (२) आत्माएँ नहीं हैं। ६ (दो) देश आदिष्ट हैं सद्भावपर्यायोंसे और देश आदिष्ट है असद्भावपर्यायोंसे
अत एव त्रिप्रदेशिक स्कन्ध (दो) आत्माएँ हैं और आत्मा नहीं है । (५) ७ देश आदिष्ट है सद्भावपर्यायोंसे और देश आदिष्ट है तदुभयपर्यायोंसे अत एवं
त्रिप्रदेशिक स्कन्ध आत्मा है और अवक्तव्य है। ८ देश आदिष्ट है सद्भावपर्यायोंसे और (दो) देश आदिष्ट हैं तदुभयपर्यायोंसे
अत एव त्रिप्रदेशिक स्कन्ध आत्मा है और (दो) अवक्तव्य हैं । ९ (दो) देश आदिष्ट हैं सद्भावपर्यायोंसे और देश आदिष्ट है तदुभयपर्यायोंमे
अत एव त्रिप्रदेशिक स्कन्ध (२) आत्माएँ हैं और अबक्तव्य है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org