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________________ स्याद्वादके भंगोंका प्राचीन रूप । (६) १० देश आदिष्ट है असद्भावपर्यायोंसे और देश आदिष्ट है तदुभयपर्यायोंसे अत एव त्रिप्रदेशिक स्कन्ध आत्मा नहीं है और अवक्तव्य है। २१ देश आदिष्ट है असद्भावपर्यायोंसे और (दो) देश आविष्ट है तदुभयपर्यायोंसे अत एव त्रिप्रदेशिक स्कन्ध आत्मा नहीं है और (दो) अवक्तव्य है। १२ (दो) देश आदिष्ट हैं असावपर्यायोंसे और देश भादिष्ट है तदुभयपर्यायोंसे अत एष त्रिप्रदेशिक स्कन्ध (दो) आत्माएँ नहीं हैं और अवक्तव्य है। (७) १३ देश आदिष्ट है सद्भावपर्यायोंसे, देश आदिष्ट है असावपर्यायोंसे और देश आदिष्ट है तदुभयपर्यायोंसे अत एव त्रिप्रदेशिक स्कन्ध बास्मा है, आत्मा नहीं है और अवक्तव्य है। इसके बाद गौतमने चतुष्प्रदेशिक स्कंधके विषयमें वही प्रश्न किया है। उत्तरमें भगवान्ने १९ भंग किये। तब फिर गौतमने अपेक्षा कारणके विषयमें पूछा तब उत्तर निम लिखित दिया गया (१) १ चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध आत्माके आदेशसे भारमा है। (२) २ चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध परके भादेशसे आत्मा नहीं है। (३) ३ चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध तदुभयके आदेशसे अवक्तव्य है। (१) ४ देश आदिष्ट है सद्भावपर्यायोंसे और देश आदिष्ट है असद्भावपर्यावोंसे मत एवं चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध आत्मा है और आत्मा नहीं है। ५ देश आदिष्ट है सद्भावपर्यायोंसे और (अनेक) देश आविष्ट हैं असाय पर्यायोंसे अत एव चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध आत्मा है और (अनेक ) भारमाएँ नहीं है। ६ (अनेक ) देश आदिष्ट हैं सद्भावपर्यायोंसे और देश भादिष्ट सहायपर्यायोंसे अत एव चतुष्पदेशिक स्कन्ध (अमेक ) आत्माएँ हैं और मामा नहीं है। (अनेक-२) देश भादिष्ट है समावपर्यायोंसे और (भनेक-२) देश भादिष्ट हैं असावपर्यायोंसे मत एव चतुष्प्रदेशिक स्कन्द (अनेक-२) मास्माएँ हैं और (अनेक-२) आत्माएँ (५) ८ देश भादिष्ट है समाषपयोंसे और देश भादिष्ट है तदुभवपर्यायोंसे मत एवं 'चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध आत्मा है और अवक्तव्य है। ९ देश आदिष्ट है सद्भावपर्यायोंसे और (अनेक) देश आदिष्ट हैं तदुभयपर्यायोंसे अत एव चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध आत्मा है और ( अनेक) अवक्तव्य है । १० (अनेक) देश आदिष्ट हैं सद्भावपर्यायोंसे और देश आदिष्ट है तदुभय. पर्यायोंसे अत एव चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध (अनेक) आत्माएँ हैं और अवक्तव्य है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001047
Book TitleNyayavatarvartik Vrutti
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorShantyasuri, Dalsukh Malvania
PublisherSaraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages525
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Nyay, Philosophy, P000, & P010
File Size11 MB
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