SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 468
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०.११५. पं०१०] टिप्पणानि । २७७ सामान्यविशेषशब्दवाच्यावभिधेयौ-तयोः प्रस्तार-प्रस्तीर्यते येन नयराशिना संग्रहादिकेन स प्रस्तारः । तस्य संग्रहव्यवहारप्रस्तारस्य मूलव्याकरणी-आद्यवक्ता ज्ञाता वा द्रव्यास्तिकः"पर्यवनयः। शेषास्तु नैगमादयो विकल्या मेदाः अनयोर्द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिकयोः।" सन्मति० टी० पृ० २७१ । पृ० ११३. पं० १२. 'कापिलम्' जैनेतर दर्शनोंको जनसंमत नयोंके आभास मानकर दुर्नयों में समाविष्ट करनेका प्रारम्भ संभवतः सिद्ध से न ने किया है । उन्होंने स्पष्टरूपसे कापिल दर्शनको द्रव्यार्थिकमें, बौद्धदर्शनको पर्यायार्थिकों और काणाद दर्शनको द्रव्यपर्याय - उभयनयमें समाविष्ट किया है और उन सभीको मिथ्यावाद कहा है। -सन्मति० ३. ४८, ४९ । इसी प्रकार हरिभद्र अकलंक, विद्यानन्द आदिने क्रमशः खसमयप्रसिद्ध दर्शनोंकी नयवादों में जो घटना की उसका उपयोग करके उ० यशोविजयजीने सातों दुर्नयोंके साथ दर्शनान्तरोंको जोड दिया है वह इस प्रकार १. नैगमाभास= वैशेषिक और नैयायिक २. संग्रहाभास= वेदान्त, समी अद्वैतदर्शन, सांख्य ३. व्यवहाराभास = सांख्य', चार्वाक ४. ऋजुसूत्राभास =ताथागत -सौत्रान्तिक' ५. शब्दनयाभास = शब्दब्रह्मवाद, ताथागत (वैभाषिक) ६. समभिरूढाभास योगाचार ७. एवंभूताभास = माध्यमिक पृ० ११३. पं० १७ 'सत्कार्यवादः प्रस्तुतमें शान्त्याचार्यने सत्कार्यवादके पूर्वोत्तरपक्षकी - रचना तत्त्वसंग्रह और सन्मतिटीकाके आधारसे की है-तत्त्वसंग्रह का०८ से। सन्मति० टी० पृ० २८२ से। पृ० ११३. पं० २८. 'नहि तुलना तत्त्वसं० का० १६ । सन्मति० टी० पृ० २९६ । पृ० ११४. पं० ९. 'हेतुमन्वादि' इस पूर्वपक्षवचनका मूलाधार निम्न कारिका हैउसमें सांख्य मतानुसार व्यक्त और अव्यक्तका वैधर्म्य वर्णित है "हेतमदनित्यमव्यापि सक्रियमनेकमाश्रित लिङ्गम। सावयवं परतन्त्रं व्यक्तं विपरीतमव्यक्तम् ॥” सांख्यका० १० । पृ० ११४. पं० २३. 'परिणामो' तुलना- "अवस्थितस्य द्रव्यस्य पूर्वधर्मनिवृत्ती धर्मान्तरोत्पत्तिः परिणामः।" योगसू० भा० पृ० ३०५ । "तद्भावः परिणामः । अनादिरादिमाश्च ।" तत्त्वार्थ० ५.४१,४२ | "धर्मादीनां द्रव्याणां यथोक्तानां च गुणानां खभावः खतत्त्वं परिणामः।" तत्त्वार्थभा० ५.४१ । पृ० ११५. पं० १०. 'सलिलात्' तुलना - "न चान्ये न च नानन्ये तरङ्गा ह्युदध्यान्विताः। विज्ञानानि तथा सप्त चित्तेन सह संयुताः॥ १. यशोविजयजीने अन्यत्र नयविषयक प्रकरणोमें सांख्यको संग्रहाभासमें समाविष्ट किया है किन्तु भनेकाम्तव्यवस्थामें व्यवहाराभासमें सांख्यका समावेश किया है-पृ० ३१। २ अनेका० पृ० ५५ सन्मति०टी०पृ०३१८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001047
Book TitleNyayavatarvartik Vrutti
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorShantyasuri, Dalsukh Malvania
PublisherSaraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages525
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Nyay, Philosophy, P000, & P010
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy