________________
२४४
टिप्पणानि । [०७५.५० ११पृ० ७६. पं० १२. 'प्रतन्यते' सांख्य के पूर्वपक्षका वैशेषिकने जो उत्तर दिया यह यहाँ समाप्त होता है । और व्योमवती टी का का उद्धरण भी यहीं समाप्त होता है । देखो, व्यो० पृ० १६०।
पृ० ७६. पं० २१. 'तम' नै या यि क, वैशेषिक और प्रा भाकरों ने 'तम' को अमावात्मक माना है। जैन, भर्तृहरि, भा, सांख्य और वेदान्तिओं ने उसे भावात्मक माना है । आयुर्वेद सांख्य दर्शनानुगामी होनेसे उसमें भी तमको भाषास्मक माना है। अन्धकारके विषयमें दार्शनिक चर्चा के लिये देखो, सन्मति० टी० पृ० ५४३ । न्यायकुमदचन्द्र पृ० १६६ । इन दोनों ग्रन्थकी तुलनात्मक टिप्पणीमें अन्यदर्शनोंकी मान्यताको तत्वत्दर्शनके प्रन्योंसे मूल पाठ उद्धृत करके बताया गया है ।
पृ० ७६. पं० २५. 'लब्धि'-तुलना- "लम्भनं लब्धिः। का पुनरसीवानापरणभयोपशमविशेषः। यत्सनिधाना मात्मा द्रव्येन्द्रियनिति प्रति व्याप्रियते, तचिमिच, मात्मनः परिणाम उपयोगः।" सर्वार्थ० २.१८ । “मर्थग्रहणशकिः लम्पिा, उपयोगा पुनः मर्वप्रहपव्यापारा।" लघी० स्व० ५।
पृ० ७६. पं० २९. 'गवाक्ष तुलना-"उपलखा तथाऽऽया तब्धिगमे तदुपरसरणामो। गेहगवक्लोघरमे वि तदुषलखाऽणुसरिया वा॥" विशेषा० गा० ९२ ।
पृ० ७७. पं० ९. 'स्मृति' स्मृत्यादि अत्यन्त परोक्ष ज्ञानोंको मी मानसप्रत्यक्ष बताने की परंपरा अककके प्रन्थमें देखी जाती है । उन्होंने स्पष्ट ही कहा है कि स्मृति, संबा, चिन्ता और आमिनिबोधिक ज्ञान अनिन्द्रियप्रत्यक्ष हैं-"मनिन्द्रियमत्वसं स्मृतिसंवाचिन्ताऽऽमिनियोधात्मकम् ।" लघी० स्व० ११ ।
साबमें इन्द्रिय और अनिन्द्रियसे होनेवाले शानको मतिज्ञान कहा गया है।मत एवं उन्होंने संपूर्ण मति बामको सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष मान करके उसके दो मेद किये इन्द्रियप्रत्यक्ष
और अनिन्द्रियप्रत्यक्ष । शासमें स्मृति आदि ज्ञानोंको मतिरूप माननेकी मी पद्धति थी। बत एव उन्होंने स्मृत्यादि ज्ञानोंको अनिन्द्रियप्रत्यक्षके मेदरूपसे बता दिया ।
बकलंक की तरह वा दिराज का मी यही मन्तव्य है कि स्मृत्यादि ज्ञान मानसप्रत्यक्ष हैंप्रमाणनिर्णय पृ० २७।
यद्यपि स्मृति, संज्ञा आदि ज्ञानोंको नंदी सूत्र (सूत्र ३६) तथा आवश्यक नियुक्ति में (गा० १२) मति ज्ञान कहा मया है', आचार्य उमा खा ति ने मी त स्वार्थ सूत्र में बागमिक उक्त परंपराका समर्थन किया है; तथापि आगमिक परंपराको संपूर्ण मतिज्ञान प्रत्यक्षरूपसेसाम्यवहारिकप्रत्यक्षरूपसे . मान्य हो ऐसा प्रतीत नहीं होता । क्योंकि नंदी सूत्र में इन्द्रियप्रत्यक्षके मेदरूपसे श्रोत्रादि पांच इन्द्रियोंसे होनेवाले ज्ञानको ही बताया गया है- "इन्दिप पथक्क पंचविहं पण्णवं तं जहा, सोइन्दियपवावं, पक्विान्दियपवावं, मानिन्दियपवावं, जिम्मिन्दियपवक्वं, फासिन्दियपवक्वं" नन्दी० सू०४।।
. "सणा सई मई पणा सर्व भाभिणियोहिन ।" २. "मतिः पतिः संक्षा, विवामिनियोध इलामन्चर"तस्वा० १.१३॥
-
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org |