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प्रतापना।
अन्य समी वादोंके होते हुए मी जिस वादने आगेकी पीढीके ऊपर अपना असर कायम रखा और जो उपनिषदोंका खास तस्व समझा जाने लगा वह तो आत्मवाद ही है। उपनिषदोंके ऋषि अन्तमें इसी नतीजे पर पहूँचे कि विश्वका मूल कारण या परम तत्त्व आत्मा ही है। परमेश्वरको मी जो संसारका आदि कारण है श्वेताश्वतरमें 'आत्मस्ख' देखने को कहा है"समात्मसं बेऽचुपश्यन्ति धीरास्तेषां सुखं शाश्वतं तरेपाम्" ६.१२। अान्दोम्पका निन्न वाक्य देखिए“अथातः भारमादेश: आत्मैवाधस्ताद, भात्मोपरिधान, मारमा पभाव. सास्मा पुरस्तात्, मात्मा दक्षिणता, आत्मोत्तरतः आत्मैवेदं सर्वमिति । स वा एष एवं पश्यन् एवं मम्वान एवं विजाननात्मरतिरात्मक्रीड आत्ममिथुन मात्मानन्दः स खराइ भवति वस सरेंषु लोकेषु कामदारो भवति । छान्दो० ७.२५ ।
बृहदारण्यकमें उपदेश दिया गया है कि"नया भरे सदस्य कामाय सर्वे प्रियं भवति मात्मनस्तु कामाय सर्व प्रियं भवति। मात्मा वा अरे द्रव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यो मैोव्यात्मनो मा मरे. पनेर अषणेन मस्या विज्ञानेनेदं सर्व विदितम् । २.४.५।।
उपनिषदोंका ब्रह्म और आत्मा मिन्न नहीं किन्तु आत्मा ही ब्रह्म है- 'अयमात्मा ब्रह्म'बृहदा० २.५.१९।
इस प्रकार उपनिषदोंका तात्पर्य आत्मवाद या ब्रह्मवादमें है, ऐसा जो कहा जाता है वह उस कालके दार्शनिकोंका उस वादके प्रति जो विशेष पक्षपात था उसीको लक्ष्यमें रखकर है । परम तत्त्व आत्मा या ब्रह्मको उपनिषदोंके ऋषियोंने शाश्वत, सनातन, नित्य, अजन्य, भुव माना है।
इसी आत्म तत्त्व या ग्रह्म तत्त्वको जड़ और चेतन जगत् का उपादान कारण, निमित्त कारण या अधिष्ठान मान कर दार्शनिकोंने केवलाद्वैत, विशिष्टाद्वैत, द्वैताद्वैत या शुद्धाद्वैतका समर्थन किया है। इन समी वादोंके अनुकूल वाक्योंकी उपलब्धि उपनिषदोंमें होती है। अतः इन समी बादोंके बीज उपनिषदोंमें है ऐसा मानना युक्तिसंगत ही है।
उपनिषत्कालमें कुछ लोग महाभूतोंसे आत्माका समुत्थान और महाभूतोंमें ही भाल्माका लय माननेवाले थे किन्तु उपनिषत्कालीन आस्मवादके प्रचण्ड प्रवाहमें उस वादका कोई खास मूल्य नहीं रह गया। इस बात की प्रतीति बृहदारण्यकनिर्दिष्ट याज्ञवल्क्य और मैत्रेयीके संवादसे हो जाती है। मैत्रेयीके सामने जब याज्ञवल्क्यने भूतवादकी चर्चा छेड़ कर कहा कि “किहानधन इन भूतोंसे ही समुस्थित होकर इन्हीं में लीन हो जाता है, परलोक या पुनर्जन्म जैसी कोई बात नहीं है। तब मैत्रेयीने कहा कि ऐसी बात कह कर हमें मोहमें मत गलो । इससे स्पष्ट है कि मात्मवादके सामने भूतवादका कोई मूल्य नहीं रह गया था।
प्राचीन उपनिषदोंका काल प्रो. रानडेने ई०पू० १२०० से ६०० तक का माना । यह काल भगवान् महावीर और बुद्धके पहलेका है । अतः हम कह सकते हैं कि उन दोनों
को १.२.१० । २...। १३.५। २.४.२ । ता० २.१५ । मुणको लागि । .Constru. p. 205-232. ... "विज्ञानधन एवैतेभ्यो भूतेभ्यः समुत्थाय तान्येवानुविनश्यति न प्रेस संज्ञा भलीयरे प्रवीमिति होवाच याज्ञवल्क्यः ।" वृहदा० २.४.१२ ।
.Constru. p. 18
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