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________________ पृ० ६२. पं०६] टिप्पणानि । २२१ (अ) न्याय सूत्रकार ने उपमानका लक्षण यह किया है - "प्रसिद्धसाधात् साध्या साधनमुपमानम् । १.१.६ । इस सूत्रके व्याख्यानमें वृद्ध नै या यि कों में तथा उस्योतकरादि में मतभेद है। द्धनैया यि कों के मतमें अतिदेश वाक्य ही उपमान प्रमाण है । जय न्स ने बने यायिकों के अनुसार इस सूत्रका व्याख्यान इस प्रकार किया है "मत्र बनेयापिकास्तावदेवमुपमानखरूपमाचक्षते । संहासविसंबन्धप्रतीतिफलं प्रसिद्धतरयो सारूप्यप्रतिपादकमतिदेशवाक्यमेवोपमानम् । गषयार्थी हि नागरकोऽनवगतगवयसकपस्तदमिक्षमारण्यकं पृच्छति 'कीडर गषयः' इति । स तमाह-'याडशो गौलाग्यो गवयः' इति । तदेतद्वाक्यमासिकस्य प्रसिद्धन गवा सारश्यममिवषद तद्वारकममसिदस्य गवयसंहामिषेयत्वं ज्ञापयतीत्युपमानमुच्यते ।" न्यायमं० वि० पृ० १४१ । जयन्त का कहना है कि भाष्य कार भी अतिदेशवाक्यको ही उपमान प्रमाण मानते हैं, भौर ऐसा माननेमें कोई असंगति नहीं - न्यायमं० वि० पृ० १४२।। (आ) शबरने अपने भाष्य में वृत्ति कार उपवर्ष के मतका अनुवाद किया है। उससे उपवर्षसमत उपमानलक्षणका पता चलता है । भाष्य के टीकाकार और अन्य ग्रन्थकार इस उपवर्षके मतका ही शबरके मतके रूपमें उल्लेख करते हैं इसका कारण यही है कि शबरने अपने भाष्य में उसे लिख दिया है। उपवर्षके मतानुसार उपमानका लक्षण यह है - "उपमानमपि सारश्यमसभिकष्टेऽर्थे पुविभुत्पादयति, यथा गवयवर्शनं गोसरणस्य" । शाबर० १.१.५। हुमारिल का कहना है कि अतिदेशवाक्यको उपमान मानने पर भागममें ही उपमान का अन्तर्भाव हो जाता है इसी लिये श बरने (अर्थात् उपवर्ष ने) उपमानका यह नया लक्षण खिर किया है । इसके अनुसार सादृश्य' उपमान प्रमाण है। क्योंकि उसीसे असनिकृष्ट गोमेंजो कि स्मरणका विषय है-गवयसाऽस्यकी बुद्धि होती है अर्थात् 'वह गो इस गवपके सदृश ऐसी दुखि उत्पन होती है। सारस्य नहीं किन्तु सादृश्यज्ञान उपमान प्रमाण है-ऐसा स्पष्टीकरण टीकाकारोंने किया है-"पूर्व मर्यमाणेऽर्थे रश्यमानार्थसारयज्ञानमुपमानम् ।" शास्त्रदी० पृ० ७४ । जैसे अनुमानमें ज्ञायमानलिङ्गके खानमें लिझज्ञानको करण माना गया है उसी प्रकार उपमितिका करण मी सारश्य नहीं किन्तु सादृश्यज्ञान ही माना गया है। मीमांसा की तरह वेदान्त में मी उपमान सादृश्यज्ञान ही कहा गया है-"तत्र सारश्य "सावरे सागमावीमावास्यवोपवर्णितम् ।" सोकमा उप० । तस्वसं०६० WI १. " गोसारणलेखन्दो मायामा उपवसंमत एवं भापकारेण लिखितवाद बाबारादिमिर भायखेनैवरचते।"शाखदी० युकि०पू०७४।६.सवरने बाहरनमें गवर. सबको साहचलानीव रखा है। इसका मतलब है-साध्वविशिगवदर्शनम् भार "भरवं मालमसाल्पगविक्षेत्र पस्सनः गोसको गवयः' इत्याकारकं सारयविशिष्मवयनम्"-शाबर माप. .."अनुमावाशांबमा कितुका नहि।"कारिका०६७। ..."सारस्य गोवंशा सावविपापमान"-प्रकरणपं०पू० ११० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001047
Book TitleNyayavatarvartik Vrutti
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorShantyasuri, Dalsukh Malvania
PublisherSaraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages525
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Nyay, Philosophy, P000, & P010
File Size11 MB
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